12 JYOTIRLIGA CHAR DHAM द्वादश ज्योतिर्लिंग तथा चार धाम यात्रा

आ रहे हैं हम महादेव ......

😘😘

#NewProfilePic
गंगा माँ

#नीलकंठ 🦃
देवि! सुरेश्वरि! भगवति! गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे ।
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥ १ ॥

भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ २ ॥
हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम्॥३॥

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम्।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः॥४॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खंडित गिरिवरमंडित भंगे।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये॥५॥

कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवति कृततरलापांगे॥६॥
तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे॥७॥

पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे।
इंद्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये॥८॥
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम्।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥९॥

अलकानंदे परमानंदे कुरु करुणामयि कातरवंद्ये।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुंठे तस्य निवासः॥१०॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः।
अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः॥११॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम्॥१२॥
येषां हृदये गंगा भक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः।
मधुराकंता पंझटिकाभिः परमानंदकलितललिताभिः॥१३॥
गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम्।
शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः तव इति च समाप्तः॥१४।।
और अब तेरी डोर मेरे हाथ में...
#महाशिवरात्रि

आज आपको घाटों की सैर करा कर लाता हूँ..
और ये हैं बाबा राम अवतार और हम भी हैं अब राम भरोसे...
अस्सी घाट से शुरू कर रहा हूँ,
राज घाट तक ले जाएंगे बाबा और तय हुआ है कि किस्से कहानियाँ सुनातेके जायँगे।

बाबा 70 से ज़्यादा #महाशिवरात्रि देख चुके हैं..
वाराणसी के घाट गंगा नदी के धनुष की आकृति होने के कारण मनोहारी लगते हैं। सभी घाटों के पूर्वार्भिमुख होने से सूर्योदय के समय घाटों पर सूर्य की पहली किरण दस्तक देती है। उत्तर दिशा में राजघाट से प्रारम्भ होकर दक्षिण में असी घाट तक करीब सौ से अधिक घाट हैं।
असि से आदिकेशव तक घाट श्रृंखला में हर घाट के अलग ठाठ हैं, कहीं शिव गंगा में समाये हुये हैं तो किसी घाट की सीढ़ियां शास्त्रीय विधान में निर्मित हैं, कोई मन्दिर विशिष्ट स्थापत्य शैली में है तो किसी घाट की पहचान वहां स्थित महलों से है तो कई घाट मौज-मस्ती का केन्द्र हैं।
ये घाट काशी के अमूल्य रत्न हैं, जिन्हें किसी जौहरी की आवश्यकता नहीं। गंगा केवल काशी में ही उत्तरवाहिनी हैं तथा शिव के त्रिशूल पर बसे काशी के लगभग सभी घाटों पर शिव स्वयं विराजमान हैं। विभिन्न शुभ अवसरों पर गंगापूजा के लिए इन घाटों को ही साक्षी बनाया जाता है।
स्टीमर की आवाज़ एडिट करना चाहता था और बैक ग्राउंड में शिव स्तुति पर फिर वो बनारस से छेड़छाड़ जैसा हो जाता तो कुछ नही किया।

जो जैसा जिया आज वो सब आपके सामने..
बाबा,
शिव स्तुति गा रहे थे।
रिकॉर्ड करने को हुआ तो शर्मा गए।
फिर दूर से हम क्लिक कर ही लिए।

इनका बेटा कहीं बैंक में नौकरी करता है।
20 साल से घर नही आया..

बताए और फिर बढ़िया सा गाली दिए अपने बिटवा को..

ई बनारस वा बाबू .. 🤣🤣
इन घाटों की कहानी भी है जो फिर कभी सुनाऊंगा।

बाबा के पास हो आया शाम को और बजा आया डुगडुगी ..

कैमरे लेजाना मुमकिन ही नही था अंदर तो बाहर खड़े हो कर ही डुगडुगी बजा दिए।

आज तो अंदर तहलका ही था..
मानो तिल रखने की भी जगह नही।
और फिर पहुंचे भैरो बाबा के पास जिन्हें काशी का कोतवाल कहते हैं ऐसा बताया गया मुझे।

😘😘😘
हो आये बाबा के एक और घर..

मालवीय जी ने जो बनाया था उस घर के प्रांगण में बाबा विराजे हुए थे।
आपलोग भी कर लीजिए
#हर_हर_महादेव
दुर्गा मंदिर काशी के पुरातन मंदिरॊ मॆ सॆ एक है। कहते हैं कि इस मंदिर का उल्लॆख " काशी खंड" मॆ भी मिलता है। यहाँ माँ दुर्गा "यंत्र" रूप में विरजमान थी। इस मंदिर में बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी, एवं माता काली की मूतिॅ रूप में भी मंदिर बने हुए थे।

भीड़ थी ??
बेशक..☺️
मंदिर स्थल पर माता भगवती के प्रकट होने का संबंध अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन की कथा से जुड़ा है।
राजकुमार सुदर्शन की शिक्षा-दीक्षा प्रयागराज में भारद्वाज ऋषि के आश्रम में हुई थी। शिक्षा पूरी होने के उपरान्त राजकुमार सुदर्शन का विवाह काशी नरेश राजा सुबाहू की पुत्री से हुआ था।
इस विवाह के पीछे रोचक कथानक है कि काशी नरेश राजा सुबाहू ने अपनी पुत्री के विवाह योग्य होने पर उसके स्वयंवर की घोषणा की। स्वयंवर दिवस की पूर्व संध्या पर राजकुमारी को स्वप्न में राजकुमार सुदर्शन के संग उनका विवाह होता दिखा।
राजकुमारी ने अपने पिता काशी नरेश सुबाहू को अपने स्वप्न की बात बताई। काशी नरेश ने इस बारे में जब स्वयंवर में आये राजा-महाराजाओं को बताया तो सभी राजा सुदर्शन के खिलाफ हो गये व सभी ने उसे सामूहिक रूप से युद्ध की चुनौती दे डाली।
राजकुमार सुदर्शन ने उनकी चुनौती को स्वीकार कर मां भगवती से युद्ध में विजयी होने का आशीर्वाद मांगा। राजकुमार सुदर्शन ने जिस स्थल पर आदि शक्ति की आराधना की, वहां देवी मां प्रकट हुई और सुदर्शन को विजय का वरदान देकर स्वयं उसकी प्राणरक्षा की।
कहा जाता है कि जब राजा-महाराजाओं ने सुदर्शन को युद्ध के लिए ललकारा तो मां आदि शक्ति ने युद्धभूमि में प्रकट होकर सभी विरोधियों का वध कर डाला। इस युद्ध में इतना रक्तपात हुआ कि वहां रक्त का कुंड बन गया, जो वर्तमान में दुर्गाकुंड के नाम से प्रसिद्ध है।
पौराणिक मान्यता के मुताबिक जिन दिव्य स्थलों पर देवी मां साक्षात प्रकट हुईं वहां निर्मित मंदिरों में उनकी प्रतिमा स्थापित नहीं की गई है ऐसे मंदिरों में चिह्न पूजा का ही विधान हैं। दुर्गा मंदिर में भी प्रतिमा के स्थान पर देवी मां के मुखौटे और चरण पादुकाओं का पूजन होता है।
काशी से विदा लेने का वक़्त आ गया है।
आप सभी से अब नासिक में मुलाकात होगी..😘😘😘
#नीलकंठ

त्रयम्बकेश्वर 🦃
ग्रिशनेश्वर

#नीलकंठ 🦃
ग्रिशनेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन, पूजन तथा अभिषेक के बाद अब हमारा अगला पड़ाव है परली वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग जो कि औरंगाबाद से लगभग 200 किलोमीटर की दुरी पर है।
चार घण्टे बाद ,10 बजे तक पहुंचने की उम्मीद है।

वहाँ से पुणे जाना होगा जो करीब 7 घन्टे का रास्ता होगा।

हर हर महादेव 🦃
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। :उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम्॥1॥

परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।:सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥2॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।:हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये॥3॥

एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रात: पठेन्नर:।:सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥4॥
शिव महापुराण के द्वादश्ज्योतिर्लिन्ग्स्तोत्रं में उल्लेखित बारह ज्योतिर्लिंगों में से कुछ की भौगोलिक स्थितियों के बारे में भक्तों के मत अलग अलग हैं।

कारण यह है की स्तोत्र (श्लोक) में इन ज्योतिर्लिंगों की भौगोलिक स्थिति अस्पष्ट है अतः लोग अपने अपने तरीके से व्याख्या करते हैं।
स्थान निर्धारण में सबसे ज्यादा विवादित दो ज्योतिर्लिंग हैं,एकहै नागेश्वरज्योतिर्लिंग जिसके बारे में कुछ लोगों का मत है कियह गुजरात स्थित द्वारका के समीप है वहीँ अन्य लोगों का मतहै यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के औंढा नमक गाँव में स्थित श्रीनागनाथ मंदिर में है।
ठीक इसी प्रकार श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में भी मतभेद है, कुछ लोगों का मानना है की यह ज्योतिर्लिंग झारखंड राज्य में देवघर कसबे में स्थित है, वहीँ अन्य लोग मानते हैं की यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के बीड  जिले में स्थित परली वैजनाथ स्थान पर स्थित है.
तो फिर प्लान ये बनाया गया है कि औंढा स्थित श्री नागनाथ मंदिर में माथा टेका जाए।

आ गए बाबा के पास..

#नीलकंठ 🦃🦃
नंदी महाराज के कान में खुसफुस भी कर दी और सुना दी उनको अपनी डुगडुगी।
यहाँ भी जैसे इंतज़ार ही हो रहा था हमारा।
कुछ एक ऐसा हो रहा है जो मैं सबसे बाद में लिखूंगा।

फिलहाल चार ज्योतिर्लिंग दर्शन हुए है।
आज अपने आप आंखें डबडबा आयी जिनका कोई कारण नही था।

संभाल लिया है और आगे बढ़ गए है परली बैजनाथ के लिए।

यहाँ से 3 घन्टे और..
आदरणीय .@nitin_gadkari महोदय,
आपसे निवेदन है कि महाराष्ट्र पंच ज्योतिर्लिंग मार्ग पर ध्यान अवश्य दें। काफी लंबा रास्ता है और सड़के वाकई ठीक नहीं है।
हाइवे पर आपने जो किया है वो अतुलनीय है पर इन सड़कों को भी आपकी ज़रूरत है।

महादेव आपकी हर मनोकामना पूरी करेंगे।

🙏🙏
सन्नाटा था यहाँ आज...
मैं आज दोपहर का आखिरी "विजिटर" था।
बैठा रहा अन्दर बाबा के पास, अभिषेक हुआ, पूजन हुआ और अब गाड़ी पुणे की ओर...

#नीलकंठ 🦃
जिन लोगों ने शिवरात्रि वाले दिन कोसा था, मेरे खाने की तस्वीरें देख कर, उनकी सुन ली है ऊपर वाले ने।कल सुबह से जूस पर ही हूँ।सर्दी गर्मी का असर था शायद। अभी सफर लंबा है तो खिचड़ी की जुगाड़ में हूँ।

रात 10 बजे तक पुणे और फिर कल सुबह 6 बजे भीमशंकर 🦃
ये वो जगह है जहां हमको खिचड़ी खाने को मिलने वाली है। सादा दही, नमक और भुने हुए पिसे जीरे के साथ पेट को आराम दिया जायगा।
तस्वीर में12 ज्योतिर्लिंगों की इस जगह से दूरी बताई गई है जो मैं अगले 10 दिनों में तय करने वाला हूँ।
सवारी भीमाशंकर की ओर चल दी है जो करीब 3 घंटे की दूरी पर है।ये महाराष्ट्र का पांचवां ज्योतरिलिंग है और मेरी यात्रा का छठवाँ।

कुंभकर्ण के बेटे भीमा राक्षस के उत्पात से देवताओं को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शंकर ने इसी स्थान पर उसका वध किया था।
आप भी कर लीजिए दर्शन...🦃🦃
कल की यात्रा श्रीशैलम के लिए जिसे श्री सैलम नाम से भी जाना जाता है। यह ज्योतिर्लिंगआंध्र प्रदेश के कुर्नूल जिले के नल्लामल्ला जंगलों के मध्य श्री सैलम पहाडी पर स्थित है।

फिलहाल पुणे से सवारी हैदराबाद के लिए निकल चुकी है। सुबह 1 बजे हैदराबाद पहुंच कर 6 बजे रवानगी होगी दर्शन हेतु।
चल दी है सवारी बाबा के घर। करीब 240 किमी जाना और आना है। 2.30 बजे होटल पहुंच पाया था।सुबह 6 बजे उठने की वजह से रात नींद ही नही हो पाई। आंख बंद किये किये नहा लिया हूँ। थोड़ा चाय वाय के बाद नींद पूरी की जायेगी और बकवास दूसरी थ्रेड में की जायेगी।
श्री शिव महापुराण में इस ज्योतिर्लिंग के आविर्भाव की कथा बिलकुल भिन्न है। इसके अनुसार भगवान शिव के पुत्र श्री गणेश और कार्तिकेय एक बार विवाह को लेकर आपस में बहस करने लगे। दोनों का हठ यह था कि मेरा विवाह पहले होना चाहिए।
बात भगवान शिव और माता पार्वती तक पहुंची तो उन्होंने कहा कि तुम दोनों में से जो पूरी पृथ्वी की परिक्रमा पहले पूरी कर लेगा, उसका ही विवाह पहले होगा। कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मयूर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए चल पड़े। लेकिन, गणेश जी के लिए यह बहुत कठिन था।
एक तो स्थूल काया, दूसरे वाहन मूषक। उन्होंने एक सुगम उपाय निकाला। सामने बैठे माता-पिता के पूजनोपरांत उनकी ही परिक्रमा कर ली और इस प्रकार पृथ्वी की परिक्रमा का कार्य पूरा मान लिया। उनका यह कार्य शास्त्रसम्मत था।
पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर जब तक कार्तिकेय लौटे तब तक गणेश जी का विवाह हो चुका था और उनके दो पुत्र भी हो चुके थे। अत: कार्तिकेय रुष्ट होकर क्रौंच पर्वत पर चले गए। वात्सल्य से व्याकुल माता पार्वती कार्तिकेय जी को मनाने चल पड़ीं।
बाद में भगवान शिव भी यहां पहुंच कर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए।चूंकि शिवजी की पूजा यहां सबसे पहले मल्लिका पुष्पों से की गई, इसीलिए उनका नाम मल्लिकार्जुन पड़ा और माता पार्वती ने यहां शिवजी की पूजा एक भ्रमर के रूप में की थी, इसीलिए यहां उनके स्थापित रूप का नाम भ्रमरांबा पड़ा।
मान्यता यह भी है कि भगवान शिव के वाहन नंदी ने स्वयं यहां तप किया था और शिव-पार्वती ने यहां उन्हें मल्लिकार्जुन और भ्रमरांबा के रूप में दर्शन दिए थे।
बाबा मल्लिकार्जुन का स्थान समीप ही है अब पर उनसे मिलने के पहले साक्षी गणपति के दर्शन हो चुके हैं।
#नीलकंठ

बाबा मल्लिकार्जुन के चरणों मे 🦃
महादेव सभी का भला करेंगे...

मोदी जी अवश्य विजयी होंगे..

हर हर महादेव....
कल कहीं नहीं,
सोमवार मीनाक्षी माँ के दर्शन और अगले दिन रामेश्वरम यात्रा।
तब तक के लिए यहाँ से विदा...

शुभरात्रि.…..🦃
हैदरबाद की सड़कों पर अकेला घूमना करीब 10 साल बाद हुआ था। यहां की बहुत सारी यादें हर सड़क के कोने कोने से जुड़ी हुई हैं।

स्कूल के कुछ साथियों से फिर मुलाकात हुई।35 साल पुराने दोस्त है और फौज में हैं सारे।

फौजियो से मिलना तो बस 💘...
सवारी निकल पड़ी है एरपोर्ट के लिए जहां से मदुरै जाना होगा। रात को मीनाक्षी माँ के दरबार मे ही डेरा डालेंगे आज और कल सुबह रामेश्वरम के लिए रवानगी डाली जायगी।

यूँ तो मैं यहां कई बार आ चुका हूँ पर मैं रामेश्वरम को अपनी इस ज्योतरिलिंग यात्रा में फिर से शामिल करना चाहता था।
मीनाक्षी मंदिर के बारे में जब तक बांच लीजिए यहां से ..

Check out @Shrimaan’s Tweet:
अम्माँ 💘
🦃
ड्राइवर बाबू ने बताया कि ये शिवा का प्राचीनतम मंदिर है। ऐसा लिखा भी है।
मुझे इस के बारे कोई जानकारी नहीं थी और ना मेरे प्लान में था।
फिलहाल मेरे प्लान बाबा के प्लान हो चुके हैं।
वो जहाँ ले जायँगे वहां ही जाना है।
मदुरै से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर है।
हाइवे से 5 किलोमीटर अंदर
64 योगिनी हर मंदिर में विराजमान है तो यहाँ भी दर्शन हो गए।
बहुत विशाल है मंदिर पर भक्तों की कमी के कारण देखभाल नही होती है।पुजारी भी नही थे। हमी कर लिये जाप और हाथ जोड़ कर चले आये।
पहचानिए 🦃
राम सेतु इन्ही पत्थरों से बना था।
#नीलकंठ🦃
सवारी निकल पड़ी है श्री ॐकारेश्वर के लिये।
करीब दो से तीन घंटे का सफर है। नर्मदा नदी पार करना है और फिर लौट के श्री ममेश्वर के दर्शन भी करने हैं। ये नौंवा ज्योतरिलिंग है जिसके बाद शाम को महाकाल उज्जैन के लिये प्रस्थान किया जाएगा।

मिलते है कुछ देर पश्चात... 😘
नंदी बाबा 🦃
#नीलकंठ
🦃
सवारी जामनगर के लिए प्रस्थान कर चुकी है जहां से द्वारका जाना होगा और फिर कल सोमनाथ और उसी के साथ 12 ज्योतिर्लिंगों की मेरी यात्रा समाप्त होगी।

केदारनाथ का बुलावा मई माह में आया है जो कि मोदी जी के चुने जाने के बाद हो पायेगा।
मोदी जी 24 को चुने जायँगे, तत्पश्चात मैं यात्रा पर..
कहने को और रिकॉर्ड के लिए तो श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मेरा 11वां होगा पर चूंकि मैं ओढा नागनाथ यात्रा कर चुका हूं जो कि इसी नाम के कारण विवादित है, मैं श्री नागेश्वर को इस यात्रा का अपना 10वां ही मान कर चल रहा हूँ।

पहले इंदौर से मुम्बई और वहां से जामनगर की यात्रा है ये 🙏🙏
जामनगर से द्वारका के लिए प्रस्थान हो गया है।
रास्ते मे ये जो भीड़ है ये उन पद यात्रियों की है जो द्वारकाधीश से मिलने जा रहे हैं।दूर दराज गाँव से, शहरों से चले आ रहे हैं। यहां से अभी 150 किलोमीटर है द्वारका।होली के दिन तक पहुंचने का ठान के चलते है ये भक्तगण।
श्रद्धा और भक्ति को 🙏
माधव 🤗
द्वारका में डेरा डाल दिया है। शाम को द्वारकाधीश जाना था पर आज थकान ज़्यादा है। कल सुबह द्वारकाधीश और रुक्मणि माई के दर्शन करके सोमनाथ के लिये प्रस्थान किया जायेगा। कल अपनी यात्रा के पहले पड़ाव पर पहुँचूंगा। आगे अब इसी तरह की यात्राएँ आवाज़ दे रही है जो आपके साथ करता रहूंगा।
शाम ठंडी है यहां पर और सबसे पहले आके गरम पानी के नीचे आधा घंटा खड़ा रहा हूँ।
शरीर मे तरावट सी आ गयी है। शाकाहारी भोजन करके सो जाऊंगा। कल फिर लंबी यात्रा है। कल सुबह मुलाकात होगी यहाँ पर फिर से..
शुभरात्रि 🙏
रुक्मिणी माई मंदिर ❤️
द्वारकाधीशजी के मंदिर से 2 किलोमीटर की दूरी पर रुक्मणीजी का मंदिर एक अलग हिस्से में बना हुआ है। 12 वीं सदी में बने देवी रुक्ममी के इस मंदिर में आने वाले सभी भक्तों को वह कथा सुनाई जाती है जिस भूल की वजह से श्रीकृष्ण और देवी रुक्मणी को अलग रहना पड़ा था।
#माधव 💖💖

हम तो खेल आए कान्हा संग होली..

हमारी तो होली ,होली...💐
आपने अगर ऐसी संगत में मंजीरे और ढपली नही बजाई तो आपने कुछ जीया नही।

अखण्ड रामायण के पाठों में,मैं रात वाली संगत का सहपाठी हुआ करता था। खंजरी, मंजीरे और ढपली बजाते बजाते कब सुबह हो जाती थी,पता ही नही चलता था।

आज बैठने का बहुत मन था किंतु आगे बढ़ना था..

चल दिये हैं अब सोमनाथ 🦃
सोमनाथ को भारत के १२ ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। मेरी इस यात्रा का ये अंतिम था। यूँ तो महादेव की कृपा से १२ ज्योतिर्लिंगों के पिछले १२ दिनों में दर्शन का सौभाग्य हो चुका है किंतु बाबा केदारनाथ के पास नही जा पाया हूं।
इस यात्रा को यहीं विराम देते हुए अब आप सभी से शीघ्र मुलाकात होगी जब मैं बाबा केदारनाथ के दर्शनों का सौभाग्य पाऊंगा और साथ ही छोटे चार धाम की यात्रा भी होगी।

श्री @narendramodi जी भारतवर्ष की नवस्थापना के लिए एक बार पुनः चुने जाए इसी मंगल कामना के साथ विदा लेता हूँ
हरहर महादेव 🦃
फिर बुलावा आया था रामलला का कि आज जन्मदिन तुम्हारा है तो हमारी जन्मभूमि तक नही आओगे ??

क्या तो मना करता ....☺️☺️☺️

मिल आया,
राम लला से .....
जेल में है हमायें लल्ला जी

😭😭😭😭😭
आपको आज शाम यहाँ के दर्शन कराने ले चलूंगा। कहा ये जाता है कि अयोध्या के दर्शन पूरे नही होते जबतक ओरछा के दर्शन ना हो।

Check out @Shrimaan’s Tweet:
यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है
ओरछा को दूसरी अयोध्या के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहां पर रामराजा अपने बाल रूप में विराजमान हैं।
यह जनश्रुति है कि श्रीराम दिन में यहां तो रात्रि में अयोध्या विश्राम करते हैं।
शयन आरती के पश्चात उनकी ज्योति हनुमानजी को सौंपी जाती है, जो रात्रि विश्राम के लिए उन्हें अयोध्या ले जाते हैं-

सर्व व्यापक राम के दो निवास हैं-

खास, दिवस ओरछा रहत हैं, शयन अयोध्या वास।।
आरती बस होने वाली है...
अभी तो बस भजन मंडली अपनी धुन में रमी हुई है।
राजा रामचंद्र महाराज की जय....

#नीलकंठ🦃
यमुनोत्री 1 जून,

गंगोत्री 2 जून,

केदारनाथ 3 जून,

बद्रीनाथ 4 जून,

हमारे दिल की सुन लेने का आभार प्रकट करने के लिए......

आ रहे हैं हम महादेव
#नीलकंठ 🦃
सर्वलोकस्य जननी देवी त्वं पापनाशिनी। आवाहयामि यमुने त्वं श्रीकृष्ण भामिनी।।
तत्र स्नात्वा च पीत्वा च यमुना तत्र निस्रता सर्व पाप विनिर्मुक्तः पुनात्यासप्तमं कुलम।

जहाँ से यमुना निकली है वहां स्नान करने और जल पीने से मनुष्य पापमुक्त होता है और उसके सात कुल तक पवित्र हो जाते हैं!
श्याम या श्वेत ?
बताइए ..
मौसम सुबह से खराब था,
सूचना आई है कि सवारी तैयार है।
चलिए ले चलते हैं आपको एक और यात्रा पर...🥰
डर तो लगा था 🙆🙆
फिर दूर कहीं बादलों के बीच चमकती पर्वत श्रृखलाएं दिखने लगी और दिल को थाम लिया..

करीब २० मिनट लगा देहरादून से यमुनोत्री के बेस कैंप तक पहुंचने में..
खरसली नाम है जहां से यात्रशुरू हुई थी २ बजे के बाद यमुनोत्री धाम की।
पुराणों में यमुना सूर्य-पुत्री कही गयी हैं। सूर्य की छाया और संज्ञा नामक दो पत्नियों से यमुना, यम, शनिदेव तथा वैवस्वत मनु प्रकट हुए। इस प्रकार यमुना यमराज और शनिदेव की बहन हैं।
होटल बताया कुछ और ठहराया कहीं और जहां से नीचे ऐसा दिख रहा थाजैसे बस नहीं डिब्बियां रखीहों।
करीब पांच किलोमीटर की यात्रा है जिसके लिए पालकी का इंतजाम किया गया है। और पालकी वाले ऐसे भीड़ लगाए हुए जैसे आज के बाद टूरिस्ट आयंगे ही नहीं।
पालकियां तैयार हैं....
मैंने मना कर दिया है।
हिम्मत दिखा रहा हूं कि पैदल जाऊंगा।
फिलहाल इस बेहद झूलते हुए और हिलते हुए पुल से आगे बढ़ रहा हूं।
पांच किलोमीटर कुछ ज़्यादा नहीं लग रहा है। फिटनेस ऊपर वालेने ठीक ठाक दे रखी है सो हिम्मत बांध ली है।
एक किलोमीटर आगया हूं।
पहला पड़ाव है रुखनेका और पालकी वालों को चाय नाश्ता कराने का...
मेरे को कहा गया है कि आगे बारिश की वजह से मेरा पैदल चलना ठीक नहीं।
इस केबाद अब सवारी चार कंधो पर आगे बढ़ने वाली है।
रास्ते की कुछ गपशप आप लोगों के लिए...
यमुना सर्वप्रथम जलरूप से कलिंद पर्वत पर आयीं थी, इसलिए इनका एक नाम कालिंदी भी है। सप्तऋषि कुंड, सप्त सरोवर कलिंद पर्वत के ऊपर ही अवस्थित हैं। आपको बताता चलूं कि यमुनोत्तरी धाम सकल सिद्धियों को प्रदान करने वाला कहा गया है।
एक जरूरीबात ये है कि पूरे रास्ते कोई नेटवर्क नहीं आता। उस एयरटेल वाली लड़की की बात मान लेनी थी।
पर जैसा होता आया है,मेरे लिए हर जगह पर कोई ना कोई तैयार रहता है।
होटल के केयर टेकर साहब ने अपना एयरटेल काफोन हॉट स्पॉट ऑन करके दे दिया है।
अपने आप ..
पता नहीं क्यों.
पालकी वाले थक गए हैं।अमूल मिल्क इलायची वाला मुझेभी लाकर दिया है।

दूध की बात हुई तो सुनिए पुराणों में उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में एक प्रियतर पटरानी कालिंदी यमुना भी हैं। वैसे यमुना के भाई शनिदेव का अत्यंत प्राचीनतम मंदिर खरसाली में है जहां हम रुके हुए हैं।
भैरो बाबा को प्रणाम करके थोड़ा आगे और बढ़ लिए। ठंडक होने लगी है, चाय का मन है पर सोच रहे हैं कि अब रुके नहीं।
कहा जाता है कि इस स्थान पर “महर्षि असित” का आश्रम था |
वे नित्य स्नान करने गंगाजी जाते थे और यही निवास करते थे। वृद्धावस्था में उनके लिए दुर्गम पर्वतीय मार्ग नित्य पार करना कठिन हो गया। तब गंगाजी ने अपना एक छोटा सा झरना ऋषि के आश्रम के पास प्रकट कर दिया।
वह उज्जवल जटा का झरना आज भी वहा है। हिमालय में गंगा और यमुना की धाराएं एक हो गई होती  यदि मध्य में दंड पर्वत न आ जाता किन्तु देहरादून के समीप ही दोनो धाराएं बहुत पास आ जाती है।
पहाड़..
पेड़...
पशु...
पहले यमुनाजी के दर्शन कीजिए फिर मंदिर ले चलता हूं ..
स्नान पूजा पश्चात दर्शन कराने ले चलता हूं आप सभी को..
मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में माँ यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजत है।इस मंदिर में यमुनोत्री जी की पूजा पुरे विधि विधान के साथ की जाती है और यमुनोत्री धाम में पिंड दान का विशेष महत्व भी बताया गया है।
लीजिए ...
आशीर्वाद ले लीजिए..
सहेज लीजिए ...
इनके बिना बाबा के दर्शन की अनुमति नहीं है..
ख़ाली हाथ ही जाना है....
बाबा को भी बता दिया है कि आ रहे हैं...
#नीलकंठ
वापिसी की तैयारी ...
करीब १० दुकानें हैं और हर दुकान पर मैगी, पारले जी और फ्रूटी की भरमार है।
हमसफ़र ...
आस्थाएं,
विश्वास...
आखिरी पड़ाव, शाम के सात बजे के करीब, अपने बचपन को फिर से लौटाने की कोशिश...
विदा ले ली है ..
इस उम्मीद में कि फिर आऊंगा दोबारा..
कल सुबह ६ बजे गंगोत्री के लिए यात्रा शुरू होगी। नेटवर्क होगा नहीं तो शामको ही मुलाकात होगी।
वापिस पुल पर ..
इस पुल ने जाने कितनी यात्राओं को सहारा दिया है।
शुभ रात्रि...
सुबह ६ बजे निकालना था पर मौसम ने फिर हंस दिया है। पैदल चलता हुआ यहां एक कोने में आ गया हूं। इन बादलों को, पहाड़ों को,पहाड़ों पर टहलती हुई सुनहरी धूप को, उनके कदमों को चूमती हरियाली को आंखों में बसा कर ले जा रहा हूं।
मिलते हैं शाम को..
आ गई सवारी गंगोत्री के लिए 😁
पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर की प्रचंड तपस्या की थी।
इन मंदिर को जाने वाले रास्तों में ये दुकानें मुझे बेहद आकर्षित करती हैं।
रुक जाता हूं, बात करता हूं , पूछता हूं और कुछ ना कुछ खरीद ही लेता हूं।
इनका व्यापार सिर्फ २महीने चलता है और भक्तगणों की वजह सेही इनका घरबार संभला रहता है।
ऋगवेद में गंगा का वर्णन कहीं-कहीं ही मिलता है पर पुराणों में गंगा से संबंधित कहानियां अपने-आप आ गयी हैं। कहा जाता है कि एक प्रफुल्लित सुंदरी का जन्म ब्रह्मदेव के कमंडल से हुआ। इस खास जन्म के बारे में दो विचार हैं।
एक की मान्यता है कि वामन रूप में राक्षस बलि से संसार को मुक्त कराने के बाद ब्रह्मदेव ने भगवान विष्णु का चरण धोया और इस जल को अपने कमंडल में भर लिया। दूसरे का संबंध भगवान शिव से है जिन्होंने संगीत के दुरूपयोग से पीड़ित राग-रागिनी का उद्धार किया।
जब भगवान शिव ने नारद मुनि ब्रह्मदेव तथा भगवान विष्णु के समक्ष गाना गाया तो इस संगीत के प्रभाव से भगवान विष्णु का पसीना बहकर निकलने लगा जो ब्रह्मा ने उसे अपने कमंडल में भर लिया। इसी कमंडल के जल से गंगा का जन्म हुआ और वह ब्रह्मा के संरक्षण में स्वर्ग में रहने लगी।
ऐसा बताया गया है कि पृथ्वी पर गंगा का अवतरण राजा भागीरथ के कठिन तप से हुआ था, जो सूर्यवंशी राजा तथा भगवान श्री राम के पूर्वज थे।आई तस्वीर में मंदिर के बगल में एक भागीरथ शिला के अवशेष हैं जहां भागीरथ ने भगवान शिव की आराधना की थी।
हम सभी फिलहाल वहीं जानेवाले हैं।
कहा जाता है कि जब राजा सगर ने अपना 100वां अश्वमेघ यज्ञ किया तो इन्द्रदेव ने अपना राज्य छिन जाने के भय से भयभीत होकर उस घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम के पास छिपा दिया था। राजा सगर के 60,000 पुत्रों ने घोड़े की खोज करते हुए आए और तप में लीन कपिल मुनि को परेशान एवं अपमानित करने लगे।
क्षुब्ध होकर कपिल मुनि ने आग्नेय दृष्टि से सभी को जलाकर भस्म कर दिया। क्षमा याचना किये जाने पर मुनि ने बताया कि राजा सगर के पुत्रों की आत्मा को तभी मुक्ति मिलेगी जब गंगाजल उनका स्पर्श करेगा। किन्तु सगर के कई वंशजों द्वारा आराधना करने पर भी गंगा ने अवतरित होना अस्वीकार कर दिया।
अंत में राजा सगर के वंशज राजा भागीरथ ने देवताओं को प्रसन्न करने के लिये 5500 वर्षों तक घोर तप किया। उनकी भक्ति से खुश होकर देवी गंगा ने पृथ्वी पर आकर उनके शापित पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति देना स्वीकार कर लिया।
देवी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के वेग से भारी विनाश की संभावना थी और इसलिये भगवान शिव को राजी किया गया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में बांध लें।
भागीरथ ने तब गंगा को उस जगह जाने का रास्ता बताया जहां उनके पूर्वजों की राख पड़ी थी और इस प्रकार उनकी आत्मा को मुक्ति मिली।
परंतु एक और दुर्घटना के बाद ही यह हुआ। गंगा ने जाह्नु मुनि के आश्रम को पानी में डुबा दिया। मुनि क्रोध में पूरी गंगा को ही पी गये पर भागीरथ के आग्रह पर उन्होंने अपने कान से गंगा को बाहर निकाल दिया। इसलिये ही गंगा को जाह्नवी भी कहा जाता है।
यहभी कहा जाता है कि गंगा मानव रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई और उन्होंने पांडवों के पूर्वज राजा शान्तनु से विवाह किया जहां उन्होंने सात बच्चों को जन्म देकर बिना कोई कारण बताये नदी में बहा दिया। राजा शांतनु के हस्तक्षेप करने पर आठवें पुत्र भीष्म को रहने दिया गया।
पर तब गंगा उन्हें छोड़कर चली गयी।
माना जाता है कि महाकाव्य महाभारत के नायक पांडवों ने कुरूक्षेत्र में अपने सगे संबंधियों की मृत्यु पर प्रायश्चित करने के लिये देव यज्ञ गंगोत्री में ही किया था।
गंगा लेने आए हैं,
गंगा लेके जाएंगे ...
🥰🥰🥰
ये है चामरावती की पत्तियां जिसे स्थानीय लोग छामरा भी कहते हैं।

गंगोत्री धाम में पूजा अर्चना में इसी पौधे के पत्तियों को चढ़ाया जाता है। इसके कारण इसे गंगातुलसी भी कहा जाता है।
मान्यताओं के अनुसार राजा भगीरथ के तप से जब गंगा धरती पर अवतरित हुईं तो गंगोत्री क्षेत्र में आस पास उन्हें यही वनस्पति मिली और उन्होंने गंगा की पूजा में चामरावती की पत्तियों का ही उपयोग किया था।
पूजा के बाद हमने भी गंगा मैया को गंगा तुलसी अर्पण कर दीं।
गंगोत्री शहर तथा मंदिर का इतिहास अभिन्न रूप से जुड़ा है। प्राचीन काल में यहां मंदिर नहीं था। भागीरथी शिला के निकट एक मंच था जहां यात्रा मौसम के तीन-चार महीनों के लिये देवी-देताओं की मूर्तियां रखी जाती थी।
इन मूर्तियों को गांवों के विभिन्न मंदिरों जैसे श्याम प्रयाग, गंगा प्रयाग, धराली तथा मुखबा आदि गावों से लाया जाता था जिन्हें यात्रा मौसम के बाद फिर उन्हीं गांवों में लौटा दिया जाता था।
गढ़वाल के गुरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने 18वीं सदी में गंगोत्री मंदिर का निर्माण इसी जगह किया जहां राजा भागीरथ ने तप किया था।साथही मंदिर में प्रबंध के लिये सेनापति थापा ने मुखबा गंगोत्री गांवों से पंडों को भी नियुक्त किया था।
इसके पहले टकनौर के राजपूत ही गंगोत्री के पुजारी थे। माना जाता है कि जयपुर के राजा माधो सिंह द्वितीय ने 20वीं सदी में मंदिर की मरम्मत करवायी।
ई.टी. एटकिंस ने दी हिमालयन गजेटियर (वोल्युम III भाग I, वर्ष 1882) में लिखा है कि अंग्रेजों के टकनौर शासनकाल में गंगोत्री प्रशासनिक इकाई पट्टी तथा परगने का एक भाग था। और वो उसी मंदिर के ढांचे का वर्णन करता है जो आज है।
एटकिंस आगे बताते हैं कि मंदिर परिवेश के अंदर कार्यकारी ब्राह्मण (पुजारी) के लिये एक छोटा घर था तथा बाहर तीर्थयात्रियों के लिये लकड़ी का छायादार ढांचा था।
मंदिर में गंगा मैया का जल अर्पण कर दिया गया है और अब विदा लेने का वक़्त आ गया है गंगा मैया के चरणों के स्पर्श केबाद..
होटल में आकर जो खिड़की खोली तो चांद का टुकड़ा तो नहीं दिखा पर फिर भी दिल माउंटेन माउंटेन हो गया।
दूर एक मंदिर था ...
जिसे कहा जा सकता है कि..

कुछ ऐसेभी मंदिर होते हैं..🥰
शाम होने को थी..
ऐसा नज़ारा देखा तो काली काफी की तलब अपने आप ही लग आयी थी।
कमरे से अपनी वाली काफी निकाली , गर्म पानी मिलाया और मग लेकर बैठ गया।
ना कुछ लिखने का,ना पढ़ने का, ना किसी से बात करने का..
सिर्फ नदी को सुनना और देखना और फिर एक इश्क़ होगया नदी से..
इसके आगेकी दास्तां अब कल..
ये दास्तां कल की थी जिसमें कुछ किस्से बाकी हैं।
आज बाबा केदार नाथ जी हो आया हूं जिनके बारे में आगे बात करूंगा।
कल की यात्रा बाबा बद्रीनाथ की है।
सुबह ७ बजे सवारी आने वाली है तो ५ बजे उठना है।
शुभरात्रि 🥰🥰
शाम होने को थी, थकान तो बहुत थी पर तय किया गया कि आसपास का एक चक्कर लगाया जाए।
तारीफ कीबात ये है कि पहाड़ों पर इतनी बर्फ होने के बावजूद अभी सर्दी सिर्फ एक स्वेटर वाली ही है।
वैसे मन तो ये है कि उचक कर पहाड़ों परबैठ जाऊं और वो बादलों का गोला खा जाऊं।
😅
इस मंदिर की और जिन्होंने मंदिर बनाया है उसकी कहानी अगली ट्वीट में सुनाता हूं।
उम्मीद कीजिए कि वीडियो पोस्ट हो जाए।
कहानी बगोरी की...
मोदी जी ने इस क्षेत्र का काया कल्प कर दिया है, ऐसा यहां का हर निवासी कहता सुनाई देता है।
ये वो आर्मी का क्षेत्र है जहां मोदी जी पिछली दीवाली जवानों के साथ मनाने आए थे।
वो होटल में नहीं बल्कि यहीं कैंप में रुके थे।
तस्वीरें और वीडियो उतना न्याय नहीं कर पाते हैं इन खूबसूरत वादियों के साथ।
आपको यहां एक बार तो आना ही पड़ेगा ये जानने के लिए कि
" ये क्या जगह है दोस्तों...
इन आवाजों से कुछ लोग भयभीत होते हैं..
मैं क्या कहूं,
आप ही कुछ कहें..
लक्ष्मी नारायण मंदिर है ये..
यहां पर ध्यान नहीं लगाया जाता,
अपने आप लग जाता है।
इंटरनेट नहीं होने का सुख यहां पर बैठ कर प्राप्त किया गया।
बैठा रहा, जब तक अंधेरा नहीं हो गया था। रिसोर्ट से कुछ ही दूर मंदिर के प्रांगण में है ये जगह।
पैदल काफी चल चुका हूं और थकान सी होने लगी थी।
बाबा केदारनाथ के लिए सवारी तैयार है।
सेरसी आ चुके थे जो हरशिल से ५००० फिट के आसपास है। अब यहां से बाबा केदार नाथ की उड़ान है जो करीब ६००० फिट और ऊंचाई पर है।
सवारी फिर तैयार है
ये पहला दृश्य और सांस जैसे थम सीगई।
इस मन्दिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, पर हजार वर्षों से केदारनाथ एक महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा रहा है। पर राहुल सांकृत्यायन जी के अनुसार ये १२-१३वीं शताब्दी का है। 🤐
ग्वालियर से मिली एक राजा भोज स्तुति के अनुसार उनका बनवाय हुआ है जो १०७६-९९ काल के थे।एक मान्यतानुसार वर्तमान मंदिर ८वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया जो पांडवों द्वारा द्वापर काल में बनाये गये पहले के मंदिर की बगल में है।
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया।
यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।

और पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे।
भगवान  के दर्शन के लिए पांडवकाशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे उन्हें खोजते हुए हिमालय आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतध्र्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए।
भगवान शंकर ने तब तक बैल का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी बैल पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए।
भीम बलपूर्वक इस बैल पर झपटे, लेकिन बैल भूमि में अंतध्र्यान होने लगा। तब भीम ने बैल की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया।
उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है।
शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथमें, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। यहां शिवजी के भव्य मंदिर बने हुए हैं

और अब इस यात्रा की श्रृंखला में अगले बरस वहां की ही यात्रा होगी।
बाहर प्रांगण में नन्दी महाराज विराजमान हैं।
अर्जी लगा आए हैं आप सभी के लिए भी ..
आप सभी के स्वस्थ ऐवम उन्नत जीवन हेतु 🥰🥰
नंदी महाराज कहने लगे,"हो गए प्रसन्न"?
हम बोले, अभी नहीं , जी नहीं भरा ..

मुस्कुरा दिए नंदी महाराज..
और फिर....

हर हर महादेव......
केदारनाथ के संबंध में कहा गया है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किये बिना बद्रीनाथ की यात्रा करता है, उसकी यात्रा निष्फल जाती है और केदारनाथ सहित नर-नारायण-मूर्ति के दर्शन का फल समस्त पापों के नाश पूर्वक जीवन मुक्ति की प्राप्ति बतलाया गया है।
अपने कुछ मित्रो केलिए यहां से कुछ लिया है। जिनके भाग्य में होगा पहुंच जाएगा।
कुछ मंदिर होते हैं...
और कुछ स्वर्ग द्वार .....

प्रणाम बाबा, फिर आऊंगा ...
इन श्रद्वालु जनो को बाबा से मिलने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा।
मेरी किस्मत ठीक निकली इस बार,
सरकारी आदेश ने कुछ समय के लिए केदारनाथ यात्रा को रोक दिया था भीड़के कारण..

हम तो डुगडुगी वाले हैं तो ...
उड़ चला बाबा बद्री नाथ जी से मिलने..
ये कोई शक्ल है ना ?

🙈
ये पहला नज़ारा था...
मंदिर तो ये भगवान विष्णु को समर्पित है , और चारधाम और छोटा चारधाम तीर्थ स्थलों में से एक है। जो कि अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है । ये पंच-बदरी में से एक बद्री कहलाते हैं।
उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग तीनों ही विराजमान हैं।
इसके कारण ही उत्तराखण्ड को देवभूमि का नाम दिया गया है।
एक अन्य संकल्पना अनुसार इस मन्दिर को बद्री-विशाल के नाम से पुकारते हैं और विष्णु को ही समर्पित निकटस्थ चार अन्य मन्दिरों – योगध्यान-बद्री, भविष्य-बद्री, वृद्ध-बद्री और आदि बद्री के साथ जोड़कर पूरे समूह को "पंच-बद्री" के रूप में जाना जाता है।
वही सुनहरे से रंग वाला भवन...
विष्णु पुराण, महाभारत तथा स्कन्द पुराण जैसे कई प्राचीन ग्रन्थों में इस मन्दिर का उल्लेख मिलता है। आठवीं शताब्दी से पहले आलवार सन्तों द्वारा रचित नालयिर दिव्य प्रबन्ध में भी इसकी महिमा का वर्णन है और यह विष्णु को समर्पित १०८ दिव्य देशों में से भी एक है।

चलते हैं अंदर अब..
कहा जाता है कि मुनि नारद एक बार भगवान् विष्णु के दर्शन हेतु क्षीरसागर पधारे, जहाँ उन्होंने माता लक्ष्मी को उनके पैर दबाते देखा। चकित नारद ने जब भगवान से इसके बारे में पूछा, तो अपराधबोध से ग्रसित भगवन विष्णु तपस्या करने के लिए हिमालय को चल दिए।
जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात  होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बद्री के वृक्ष का रूप ले लिया।
साथ ही देवी मां समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं।
उन्होंने उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि "हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बद्री वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बद्री के नाथ-बद्रीनाथ के नाम से जाना जायेगा।
पौराणिक लोक कथाओं के अनुसार, बद्रीनाथ तथा इसके आस-पास का पूरा क्षेत्र किसी समय शिव भूमि (केदारखण्ड) के रूप में अवस्थित था। जब गंगा नदीधरती पर अवतरित हुई, तो यह बारह धाराओं में बँट गई तथा इस स्थान पर से होकर बहने वाली धारा अलकनन्दा के नाम से विख्यात हुई।
मान्यतानुसार भगवान विष्णु जब अपने ध्यानयोग हेतु उचित स्थान खोज रहे थे, तब उन्हें अलकनन्दा के समीप यह स्थान बहुत भा गया। नीलकण्ठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतार लिया, और क्रंदन करने लगे।
उनका रूदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा, और उन्होंने बालक के समीप उपस्थित होकर उसे मनाने का प्रयास किया, और बालक ने उनसे ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। यही पवित्र स्थान वर्तमान में बद्रीविशाल के नाम से सर्वविदित है।
हिमालय में स्थित बद्रीनाथ क्षेत्र भिन्न-भिन्न कालों में अलग नामों से प्रचलित रहा है। स्कन्दपुराण में बद्री क्षेत्र को "मुक्तिप्रदा" के नाम से उल्लेखित किया गया है, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि सत युग में यही इस क्षेत्र का नाम था।
त्रेता युग में भगवान नारायण के इस क्षेत्र को "योग सिद्ध", और फिर द्वापर युग में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन के कारण इसे "मणिभद्र आश्रम" या "विशाला तीर्थ" कहा गया है। कलियुग में इस धाम को "बद्रिकाश्रम" अथवा "बद्रीनाथ" के नाम से जाना जाता है।
शायद इस स्थान का यह नाम यहाँ बहुतायत में पाए जाने वाले बद्री (बेर) के वृक्षों के कारण पड़ा था। एडविन टी॰ एटकिंसन ने अपनी पुस्तक, "द हिमालयन गजेटियर" में इस बात का उल्लेख किया है कि इस स्थान पर पहले बद्री के घने वन पाए जाते थे, हालाँकि अब उनका कोई निशान तक नहीं बचा है।
बद्रीनाथ मन्दिर का उल्लेख विष्णु पुराण, महाभारत तथा स्कन्द पुराण समेत कई प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। कई वैदिक ग्रंथों में (लगभग १७५०-५०० ईपू) भी मन्दिर के प्रधान देवता, बद्रीनाथ का उल्लेख मिलता है।

स्कन्द पुराण में इस मन्दिर का वर्णन करते हुए लिखा गया है:
"बहुनि सन्ति तीर्थानी दिव्य भूमि रसातले। बद्री सदृश्य तीर्थं न भूतो न भविष्यतिः॥", अर्थात स्वर्ग, पृथ्वी तथा नर्क तीनों ही जगह अनेकों तीर्थ स्थान हैं, परन्तु फिर भी बद्रीनाथ जैसा कोई तीर्थ न कभी था, और न ही कभी होगा।
मन्दिर के आसपास के क्षेत्र को पद्म पुराण में आध्यात्मिक निधियों से परिपूर्ण कहा गया है।भागवत पुराण के अनुसार बद्रिकाश्रम में भगवान विष्णु सभी जीवित इकाइयों के उद्धार हेतु नर तथा नारायण के रूप में अनंत काल से तपस्या में लीन हैं।
महाभारत में बद्रीनाथ का उल्लेख करते हुए लिखा गया है -

"अन्यत्र मरणामुक्ति: स्वधर्म विधिपूर्वकात।

बदरीदर्शनादेव मुक्ति: पुंसाम करे स्थिता॥"
अर्थात अन्य तीर्थों में तो स्वधर्म का विधिपूर्वक पालन करते हुए मृत्यु होने से ही मनुष्य की मुक्ति होती है, किन्तु बद्री विशाल के दर्शन मात्र से ही मुक्ति उसके हाथ में आ जाती है।

कर लीजिए...
इसी तरह वराहपुराण के अनुसार मनुष्य कहीं से भी बद्री आश्रम का स्मरण करता रहे तो वह पुनरावृत्तिवर्जित वैष्णव धाम को प्राप्त होता है, यथा:

"श्री बदर्याश्रमं पुण्यं यत्र यत्र स्थित: स्मरेत।
स याति वैष्णवम स्थानं पुनरावृत्ति वर्जित:॥"
सातवीं से नौवीं शताब्दी के मध्य आलवार सन्तों द्वारा रचित नालयिर दिव्य प्रबन्ध  ग्रन्थ में भी इस मन्दिर की महिमा का वर्णन है; सन्त पेरियालवार द्वारा लिखे ७ स्तोत्र, तथा तिरुमंगई आलवार द्वारा लिखे १३ स्तोत्र इसी मन्दिर को समर्पित हैं।
अपना आश्रम स्थापित करने के लिए एक आदर्श स्थान की तलाश में वे वृद्ध बद्री, योग बद्री, ध्यान बद्री और भविष्य बद्री नामक चार स्थानों में घूमे। अंततः उन्हें अलकनंदा नदी के पीछे एक गर्म और एक ठंडा पानी का चश्मा मिला, जिसके पास के क्षेत्र को उन्होंने बद्री विशाल नाम दिया।
यह भी माना जाता है कि व्यास जी ने महाभारत इसी जगह पर लिखी थी।
येव्यास पोथी है जो समय के साथ बदलते बदलते शिला में परिवर्तित हो गई।
किसी किताब की पन्नों की शक्ल जैसा कुछ प्रतीत भी होता है ना ?
महाभारतकालीन एक अन्य मान्यता यह भी है कि इसी स्थान पर पाण्डवों ने अपने पितरों का पिंडदान किया था। इसी कारण से बद्रीनाथ के ब्रम्हाकपाल क्षेत्र में आज भी तीर्थयात्री अपने पितरों का आत्मा का शांति के लिए पिंडदान करते हैं।
बद्रीनाथ मन्दिर की उत्पत्ति के विषय में अनेक मत प्रचलित हैं। कुछ स्रोतों के अनुसार, यह मन्दिर आठवीं शताब्दी तक एक बौद्ध मठ था, जिसे आदि शंकराचार्य  ने एक हिन्दू मन्दिर में परिवर्तित कर दिया।
इस तर्क के पीछे मन्दिर की वास्तुकला एक प्रमुख कारण है, जो किसी बौद्ध विहार (मन्दिर) के सामान है; इसका चमकीला तथा चित्रित मुख-भाग भी किसी बौद्ध मन्दिर के समान ही प्रतीत होता है।
अन्य स्रोत बताते हैं कि इस मन्दिर को नौवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा एक तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित किया गया था। एक अन्य मान्यता यह भी है कि शंकराचार्य छः वर्षों तक (८१४ से ८२० तक) इसी स्थान पर रहे थे।
इस स्थान में अपने निवास के दौरान वह छह महीने के लिए बद्रीनाथ में, और फिर शेष वर्ष केदारनाथ में रहते थे। हिंदू अनुयायियों का कहना है कि बद्रीनाथ की मूर्ति देवताओं ने स्थापित की थी। जब बौद्धों का पराभव हुआ, तो उन्होंने इसे अलकनन्दा में फेंक दिया।
शंकराचार्य ने ही अलकनंदा नदी में से बद्रीनाथ की इस मूर्ति की खोज की, और इसे तप्त कुंड नामक गर्म चश्मे के पास स्थित एक गुफा में स्थापित किया।तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की।
ये पार्श्व में जो दो पर्वत श्रृंखलाएं दिख रही है वो नर और नारायण श्रृंखलाएं हैं।
ये वो व्यास गुफा है जहां बैठ कर महाभारत की रचना हुई थी।
सरस्वती और गणेश जी की नोक झोंक
बहुत नाम सुने थें इनका,
यहां का फेरा भी लगा दिया..
मजेदार बात ये है कि अब ऐसी ही "आखिरी चाय की दुकान" दो और खुल गई है।
कुछ दिन में उनके आगे "असली" लिख दिया जाएगा या "सबसे पुरानी"
और हां आरती ले ली गई थी मंदिर में 🥰🥰🥰
सुनिए...
तो हमे ये बताया गया कि जिस जल का आचमन लिया है वो मानसरोवर का जल है।
और मेरा मुंह खुला का खुला रह गया था...
और ये.....
येभीम पुल है। स्वर्ग रोहणी के रास्ते में जब द्रौपदी यहां आयी तो सरस्वती का वेग देख घबरा गई थी तब भीम ने इस शिला को पुल के रूप में यहां रख दिया था। दाएं हाथ पर आप भीम की उंगलियों के निशान देख सकते हैं।
और हम से रहा नहीं गया।
कल ममता के लिए तोहफा था,
आज लिब्रूतियों के लिए है।
प्रांगण के दर्शन भी कर लीजिए।
लौट आए हैं प्रसाद लेने के लिए और कल सुबह के महा अभिषेक की पर्ची कटाने।
क्या लिखा है घंटे पर ?
🤪🤪🤪
आज सुबह ३.३० बजे
सुबह ४ बजे,
महा अभिषेक से पहले
अभिषेक की तैयारी 🥰
शुरुआत 🥰
जी साहब,
कुछ मंदिर होते हैं...

कुछ सब कुछ होते हैं..
"फिर बुलाना प्रभु" ....
#नीलकंठ पर्वत है मेरे सामने...

फिर मिलेंगे इसी थ्रेड में कुछ नए महादेव के मन्दिरों के साथ।

इस यात्रा के साथ मेरी १२ ज्योतिर्लिंगों की यात्रा भी महादेव आशीर्वाद से संपन्न हुई।

🙏🙏🙏🙏
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You can follow @Shrimaan.