कल्ले की चाट खायी है आपने ?



वो उम्र जब आप कुछ याद रख सकते हैं , करीब ५ साल से शुरू होती है और मेरे लिए वो सन ७५ था वो .. घर था इतवारी गंज में और पिताजी वकालत किया करते थे. उन दिनों बाहर का खाना ज़रा गैर कानुनी समझा जाता था और आम तौर पर घरों में ही खाना बनता था . फिर भी कभी कभार बाहर खाने का अगर मौका मिलता था तो वो होती थी बुंदेली पँगते और इन पंगतो की बात ही निराली होती थी .. वो एक अपने ही तरह का माहौल होता था


( यहाँ पढ़ें पंगतो के बारे में ) और उन पंगतों के अलावा उस उम्र का अगर कुछ याद है तो वो था रघुवीर दद्दा की रबड़ी . रघुबीर दद्दा की दूकान नरियान बाजार में होती थी और रात को पिताजी , जिस दिन मूड अच्छा होता था दोने में पैक करा कर ले आया करते थे . कल्ला की चाट की भी याद है अभी तक और जिसने कल्ला की चाट खायी है उसे नारायण की चाट भी बक़वास लगेगी . डॉ आर एस गुप्ता के पुअरने क्लिनिक के बाजू में जो गली है वहां हुआ करती थी दूकान और आज के सक्सेना टेलर्स के ठीक सामने .


कल्ला  चाट वाले के बाद अगर किसी का नाम हुआ तो वो था सिटी में हाथरास वाले का जो की चमरयाउ छिड़िया के सामने हुआ करता था . अब तो बंद हो चूका है पर एक ज़माने में धाक हुआ करती थी वहां की और लोग लाइन लगाया करते थे .



उसी चमरयाउ छिड़िया के अंदर एक समोसे कचौड़ी और सन्नाटे की दूकान हुआ करती थी जो केवल शहर के लोगो की ही फेवरिट हुआ करती थी 

फिर सदर बाजार में खुली नारायण चाट भण्डार जिसने कल्ला की दूकान बंद ही करवा दी ..
जहाँ आजकल बोनI चाट भण्डार है , बद्री हलवाई के सामने वहां हुआ करती थी नारायण की पहली दुकान .







नई दिल्ली चाट भंडार भी काफी नाम कमा चुके है


और अब तो शहर के कई सरे हिस्सों में आपको कई चाट की दूकान यहाँ वहां दिखाई देंगी 













और अब जब बद्री हलवाली का नाम आया है तो फिर शर्मा स्वीट्स का नाम भी लेना होगा जिन्होंने अपनी दूकान को एक स्टेटस सिंबल बना दिया था यानि की शर्मा की मिठाई  अगर तीज त्यौहार पर आपके यहाँ आयी तो समझ लीजिये आप बड़े आदमी है .






पर फिर शायद क्वालिटी बदस्तूर ज़ारी नहीं रख पाए वो तो वंदना बाज़ी मार ले गए .




वंदना स्वीट्स हमारे ज़माने में " लाला की दूकान " के नाम से फेमस थी और फेमस था वहां का ऑमलेट पर बाद में सुपौत्रों ने काम आगे बढ़ाते हुए फास्टफूड में , खासकर बर्गर्स में अपनी साख बिठा ली थी और अब तो मिठाइयों में भी काफी नाम कर लिया है 


नॉन वेज घर में ही बना करता था पर फिर भी कभी कभी पिताजी लेकर आ या करते थे सुरेश होटल से . ख़ास बात ये होती थी वो कुल्हड़ में पैक करके दिया करता था मटन और उस मटन की सोंधी खुशबु इस समय लिखते हुए भी याद आ रही है ..



कुछ  दिनों बाद भाइयों ने एक और अलग सुरेश होटल खोल दिया 


नवभारत एक एकलौता फॅमिली रेस्त्रां हुआ करता था उन दिनों और उस समय अलग से बेकरी नहीं हुआ करती थी . जहाँ आज रेस्त्रां है वही सब कुछ हुआ करता था .शायद एक आध बार वहां भी गया हूँ उन दिनों .. खाने का तो जो है सो है पर वहां की टूटी फ्रूटी आइस क्रीम बहुत लाजवाब हुआ करती थी




नवभारत के बगल में ही होते हुए जो रेस्त्रां कभी नहीं चला वो था हॉलिडे ...

जाने कितने नाम बदले , जाने जितने काम बदले पर नहीः चला तो आखिर नहीं चला 




झाँसी में अब  कैटरिंग भी खुलने लगी है जिनमे से कुछ लोगों का कहना है तेवरी फ़ूड काफी अच्छा खाना देते हैं,




गोडिनो ट्राई एंगल के पास एक सब्ज़ीवाला भी खुल गया है 
आज भी बिरयानी बस जब्बार भाई के यहाँ ही जा के खाता हूँ। नाम सुना है आपने जब्बार भाई का ? ३० साल पहले जब्बार भाई एक एकलौते बिरयानी वाले हुआ करते थे , साथ में बनाते थे कबाब , मीट के बादशाह के सामने एक ठेले में उनका सुपरहिट रेस्त्रां चला करता था .

देखिये अगर आप पहचान पाएं उनको

अब तो नॉन वेज के नाम पर भीड़ हो गयी है झाँसी में . पिछले कई सालों में दर्ज़नो लोगों ने बिरयानी और कबाब की दुकाने लगा ली . पर जब्बार भाई और मीट के बादशाह को आज तक कोई मात न दे सका . होने को एक शिमला होटल भी होता था ठीक मीट के बादशाह के सामने और बाज लोगों को बिरयानी वहां की भी भाती थी .







वैसे खाने को तो मैंने कुल्लन की बिरयानी भी खायी है .. अब ये न पूछियेगा , कि ये कहाँ है .. ये है , सैयर गेट मस्जिद के सामने ...

थोड़े और पुराने लोगों से अगर आप पूछेंगे तो वो मस्ताना होटल का भी नाम लेंगे , ये ठिकाना था , सदर बाजार में, आजकल जहाँ अरोरा ऑप्टिकल्स है , उसके बगल से झाँसी क्लब को जो रास्ता जाता है , बस वही कोने वाली दूकान हुआ करती थी .. वहां कबाब के साथ शराब की भी फैसिलिटी थी सो शाम को अच्छा जमघट लग जाता था .

अब अगर शराब की बात चली है तो बुंदेला बार ने जितना नाम कमाया उतना शायद किसी ने नहीं .. रात ११ बजे के बाद अगर आप बोर हो रहे हों तो वहां बार के बाहर जा के चुप चाप बैठ जाइये और जी भर के मज़े ले सकते थे आप वहां लोगों के . बारिश होती थी तो बस मोटरसाइकिल उठाई , दोस्तों को घर से उठाया और सीधे या तो बरुआसागर या सुकवां ढुकवां। रास्ते भर की हरियाली और धुली हुई सड़को पर चलते चले जाने का मन करता था। कभी कभी ओरछा की तरफ भी मुड़ जाते थे जब कुछ बुन्देली खाने का मन होता था। गरमागरम पूड़ी और तरी वाले आलू के साथ सन्नाटा।


आज भी जब बारिश होती है तो मन करता है कि भाग कर या तो दाऊ के समोसे पकड़ लाऊँ या सदर बाजार से गरमा गरम भजिया। सर्दियों की शाम को सीपरी बाजार से चेलाराम के समोसे और शिवम् की बालूशाही आज भी नहीं भूलती। ओरछा तिगेले पर यादव के ढाबे पर झमझम बरसात के बीच वो दाल तड़का और तंदूरी रोटी आज भी नहीं भूला। ओरछा के रास्ते में जो अब यादव ढाबा है तिगैला पर वो पहले शिवजी नगर वाले पेट्रोल पंप के बाजू में होता था और अनोपप देखा करता था पूरा काम काज और १७ रुपये में हाल्फ प्लेट कीमा कलेजी खिलाया करता था . ये बात कर रहा हूँ मैं ८८ से ९१ तक की और उसके बाद मेरा झाँसी से विदा लेने का वक़्त आ गया था .



अस्सी के आखिर सालों में जैनक्स भी खुल गया था जिसने नवभारत को सीढ़ी टक्कर देना शुरू कर दिया था .
पूर्ण शाकाहारी होने का फायदा मिलने लगा था जैनक्स को और धीरे धीरे काम अच्चल चल गया था .
खासकर छोले भठूरे काफी फेमस हो गए थे वहां के पर बाद के दिनों में सीपरी वाले रसबाहर रेस्ट्रा को जैनक्स का नाम दे दिया गया 





शहर में शंकर हलवाई ८० के दशक में काफी हल्ला मचाये हुए थे . पर जिनसे मेरा दिल का नाता था वो थी "काका दी हट्टी"  पिताजी के दोस्त हुआ करते थे काका और कचहरी के पास एक छोटा सा रेस्त्रां चलाया करते थे . स्कूल से आते वक़्त मेरी एक बर्फी और एक भजिया फिक्स थी जो मैंने करीब १०  सालों तक बेनागा खाई .


पकिस्तान से आये थे परिवार सहित और रेफूजी कॉलोनी में रहा करते थे .अब यहाँ श्री दुर्गा भोजनालय खुल गया है 





स्टेडियम के सामने वो जो एक दूध की दूकान थी वहां की दूध जलेबी का तोड़ आज भी किसी के पास नहीं 



सारी बात इसी से शुरू हुई थी , फेसबूक का ग्रूप भी इसी की चर्चा से शुरू हुआ और फिर लिखते लिखते ये ब्लॉग शुरू कर बैठा , जैसे दाऊ के समोसे मे नशा था अब वैसे ही झाँसी के बारे मे जान ने की खुमारी छाई रहती है ..





और भी बहुत सारी  जगह होंगी जो फिलहाल याद नहीं पर आप याद दिला सकते हैं ..

देखिये याद आया 

गीता चाय एलाइट चौराहा ,  २४ घंटे चलने वाली एक मात्र दूकान जिसके बारे में कहा जाता था की अगर आपने एक हफ्ते लगातार चाय पी ली तो फिर आप को आदत लग जानी है ...

कुछ पान वाले भी थे ...
जैसे अपने सदर वाले जमुना पान भंडार 
और खिलौना टाकीज़ के बाजु में भूरे भाई 

आर भी जाने क्या क्या ....
कुछ याद रहा कुछ भूल गए 


आपको याद आये तो लिख भेजिए 














Comments

  1. From the above collection, I would recommend only two. Sharma Sweets & Badri Sweets.
    Sadly we miss the good old taste of Nav Bharat's restaurant and Holiday Restaurant's delicacies that we have had in the 70s -90s period ? Isn't ?

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  2. By the way, where is this Kwality Kawab centre ? Sadar Bazr, Dr Bella Rd. or ??

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  3. kwality kabab center is near GPO , opp jhansi hotel and next to raj palace.

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  4. What about Narayan chat bhandar in sadar

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  5. there is a veg kebab shop by the name awadh in sadar bazar near krishna talkies i would suggest u all to go and have veg kebab and veg biryani there

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  6. "LETS EAT" eat is no more in jhansi now

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  7. And if you want best tea in jhansi then I suggest 'BASANT CHAI WALA' in sipri bazar ... and also find its samosa much tastier tha chelaram

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  8. What about briyani
    Where do u find the tastiest one

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