वास्तव में अगर जम्मू कश्मीर के बारे में बातचीत करने की जरूरत है तो वह है POK-अक्साई चीन के बारे मेंl इसके ऊपर देश में चर्चा होनी चाहिए गिलगित जो अभी POK में है विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है जो कि 5 देशों से जुड़ा हुआ है अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, पाकिस्तान, भारत और तिब्बत -चाइना l
वास्तव में जम्मू कश्मीर की Importance जम्मू के कारण नहीं, कश्मीर के कारण नहीं, लद्दाख के कारण नहीं है अगर इसकी Importance है तो वह है गिलगित-बाल्टिस्तान के कारण l
इतिहास में भारत पर जितने भी आक्रमण हुए यूनानियों से लेकर आज तक (शक , हूण, कुषाण , मुग़ल ) वह सारे गिलगित से हुए l
इतिहास में भारत पर जितने भी आक्रमण हुए यूनानियों से लेकर आज तक (शक , हूण, कुषाण , मुग़ल ) वह सारे गिलगित से हुए l
हमारे पूर्वज जम्मू-कश्मीर के महत्व को समझते थे उनको पता था कि अगर भारत को सुरक्षित रखना है तो दुश्मन को हिंदूकुश अर्थात गिलगित-बाल्टिस्तान उस पार ही रखना होगा l किसी समय इस गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन अपना base गिलगित में बनाना चाहता था ।
Russia भी गिलगित में बैठना चाहता था यहां तक कि पाकिस्तान ने 1965 में गिलगित को Russia को देने का वादा तक कर लिया था आज चाइना गिलगित में बैठना चाहता है और वह अपने पैर पसार भी चुका है और पाकिस्तान तो बैठना चाहता ही था l
"दुर्भाग्य से इस गिलगित के महत्व को सारी दुनिया समझती है केवल एक उसको छोड़कर जिसका वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान है और वह है भारत"
क्योंकि हमको इस बात की कल्पना तक नहीं है भारत को अगर सुरक्षित रहना है तो हमें गिलगित-बाल्टिस्तान किसी भी हालत में चाहिए l
क्योंकि हमको इस बात की कल्पना तक नहीं है भारत को अगर सुरक्षित रहना है तो हमें गिलगित-बाल्टिस्तान किसी भी हालत में चाहिए l
आज हम आर्थिक शक्ति बनने की सोच रहे हैं क्या आपको पता है गिलगित से By Road आप विश्व के अधिकांश कोनों में जा सकते हैं गिलगित से By Road 5000 Km दुबई है, 1400 Km दिल्ली है, 2800 Km मुंबई है, 3500 Km रूस है, चेन्नई 3800 Km है लंदन 8000 Km है l
जब हम सोने की चिड़िया थे हमारा सारे देशों से व्यापार चलता था 85 % जनसंख्या इन मार्गों से जुड़ी हुई थी Central Asia, यूरेशिया, यूरोप, अफ्रीका सब जगह हम By Road जा सकते है अगर गिलगित-बाल्टिस्तान हमारे पास हो l
आज हम पाकिस्तान के सामने IPI (Iran-Pakistan-India) गैस लाइन बिछाने के लिए गिड़गिड़ाते हैं ये तापी की परियोजना है जो कभी पूरी नहीं होगी अगर हमारे पास गिलगित होता तो गिलगित के आगे तज़ाकिस्तान था हमें किसी के सामने हाथ नहीं फ़ैलाने पड़ते l
हिमालय की 10 बड़ी चोटियां है जो कि विश्व की 10 बड़ी चोटियों में से है और ये सारी हमारी है और इन 10 में से 8 गिलगित-बाल्टिस्तान में है l तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद जितने भी पानी के वैकल्पिक स्त्रोत(Alternate Water Resources) हैं वह सारे गिलगित-बाल्टिस्तान में है l
आप हैरान हो जाएंगे वहां बड़ी -बड़ी यूरेनियम और सोने की खदाने हैं आप POK के मिनरल डिपार्टमेंट की रिपोर्ट को पढ़िए आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे l वास्तव में गिलगित-बाल्टिस्तान का महत्व हमको मालूम नहीं है और सबसे बड़ी बात गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग Strong Anti PAK हैl
दुर्भाग्य क्या है हम हमेशा कश्मीर बोलते हैं जम्मू- कश्मीर नहीं बोलते हैं l कश्मीर कहते ही जम्मू, लद्दाख, गिलगित-बाल्टिस्तान दिमाग से निकल जाता है l ये जो पाकिस्तान के कब्जे में जो POK है उसका क्षेत्रफल 79000 वर्ग किलोमीटर है उसमें कश्मीर का हिस्सा तो सिर्फ 6000 वर्ग किलोमीटर हैल
9000 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा जम्मू का है और 64000 वर्ग कि.मी हिस्सा लद्दाख का है जो कि गिलगित-बाल्टिस्तान है l यह कभी कश्मीर का हिस्सा नहीं था यह लद्दाख का हिस्सा था वास्तव में सच्चाई यही है l इसलिए पाकिस्तान यह जो बार-बार कश्मीर का राग अलापता रहता है तो उसको कोई यह पूछे तो सही -
क्या गिलगित-बाल्टिस्तान और जम्मू का हिस्सा जिसपर तुमने कब्ज़ा कर रखा है क्या ये भी कश्मीर का ही भाग है ?कोई जवाब नहीं मिलेगा l
क्या आपको पता है गिलगित -बाल्टिस्तान ,लद्दाख के रहने वाले लोगो की औसत आयु विश्व में सर्वाधिक है यहाँ के लोग विश्व अन्य लोगो की तुलना में ज्यादा जीते है l
क्या आपको पता है गिलगित -बाल्टिस्तान ,लद्दाख के रहने वाले लोगो की औसत आयु विश्व में सर्वाधिक है यहाँ के लोग विश्व अन्य लोगो की तुलना में ज्यादा जीते है l
भारत में आयोजित एक सेमिनार में गिलगित-बाल्टिस्तान के एक बड़े नेता को बुलाया गया था उसने कहा कि "we are the forgotten people of forgotten lands of BHARAT" l उसने कहा कि देश हमारी बात ही नहीं जानता l
किसी ने उससे सवाल किया कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं ??
किसी ने उससे सवाल किया कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं ??
जवाब था “60 साल बाद तो आपने मुझे भारत बुलाया और वह भी अमेरिकन टूरिस्ट वीजा पर और आप मुझसे सवाल पूछते हैं कि क्या आप भारत में रहना चाहते हैं l उसने कहा कि आप गिलगित-बाल्टिस्तान के बच्चों को IIT , IIM में दाखिला दीजिए AIIMS में हमारे लोगों का इलाज कीजिए...
हमें यह लगे तो सही कि भारत हमारी चिंता करता है हमारी बात करता है l गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान की सेना कितने अत्याचार करती है लेकिन आपके किसी भी राष्ट्रीय अखबार में उसका जिक्र तक नहीं आता है l आप हमें ये अहसास तो दिलाइये की आप हमारे साथ है l
आप सभी ने पाक को हमारे कश्मीर में हर सहायता उपलब्ध कराते हुए देखा होगा l वह कहता है कि हम कश्मीर की जनता के साथ हैं, कश्मीर की आवाम हमारी है l लेकिन क्या आपने कभी यह सुना है कि किसी भी भारत के नेता, मंत्री या सरकार ने यह कहा हो कि हम POK - गिलगित-बाल्टिस्तान की जनता के साथ हैं,
वह हमारी आवाम है, उनको जो भी सहायता उपलब्ध होगी हम उपलब्ध करवाएंगे आपने यह कभी नहीं सुना होगा l कांग्रेस सरकार ने कभी POK - गिलगित-बाल्टिस्तान को पुनः भारत में लाने के लिए कोई बयान तक नहीं दिया प्रयास तो बहुत दूर की बात है l
हालाँकि पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के समय POK का मुद्दा उठाया गया फिर 10 साल पुनः मौन धारण हो गया और फिर से नरेंद्र मोदी जी की सरकार आने पर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसद में ये मुद्दा उठाया l
आज अगर आप किसी को गिलगित के बारे में पूछ भी लोगे तो उसे यह पता नहीं है कि यह जम्मू कश्मीर का ही भाग है l वह यह पूछेगा क्या यह कोई चिड़िया का नाम है ?? वास्तव में हमें जम्मू कश्मीर के बारे में जो गलत नजरिया है उसको बदलने की जरूरत है l
अब करना क्या चाहिए ?? तो पहली बात है सुरक्षा में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं होना चाहिए जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा का मुद्दा बहुत संवेदनशील है इस पर अनावश्यक वाद-विवाद नहीं होना चाहिए l एक अनावश्यक वाद विवाद चलता है कि जम्मू कश्मीर में इतनी सेना क्यों है??
तो बुद्धिजीवियों को बता दिया जाए कि जम्मू-कश्मीर का 2800 किलोमीटर का बॉर्डर है जिसमें 2400 किलोमीटर पर LOC है l आजादी के बाद भारत ने पांच युद्ध लड़े वह सभी जम्मू-कश्मीर से लड़े भारतीय सेना के 18 लोगों को परमवीर चक्र मिला और वह 18 के 18 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं l
इनमें 14000 भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं जिनमें से 12000 जम्मू कश्मीर में शहीद हुए हैं l अब सेना बॉर्डर पर नहीं तो क्या मध्यप्रदेश में रहेगी क्या यह सब जो सेना की इन बातों को नहीं समझते वही यह सब अनर्गल चर्चा करते हैं l
वास्तव में जम्मू कश्मीर पर बातचीत करने के बिंदु होने चाहिए- POK , वेस्ट पाक रिफ्यूजी, कश्मीरी हिंदू समाज, आतंक से पीड़ित लोग , धारा 370 और 35A का दुरूपयोग, गिलगित-बाल्टिस्तान का वह क्षेत्र जो आज पाकिस्तान -चाइना के कब्जे में है l
जम्मू- कश्मीर के गिलगित- बाल्टिस्तान में अधिकांश जनसंख्या शिया मुसलमानों की है और वह सभी पाक विरोधी है वह आज भी अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं, पर भारत उनके साथ है ऐसा उनको महसूस कराना चाहिए, देश कभी उनके साथ खड़ा नहीं हुआ वास्तव में पूरे देश में इसकी चर्चा होनी चाहिएl
वास्तव में जम्मू-कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदलना चाहिए l जम्मू कश्मीर को लेकर सारे देश में सही जानकारी देने की जरूरत है l इसके लिए एक इंफॉर्मेशन कैंपेन चलना चाहिए l पूरे देश में वर्ष में एक बार 26 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर का दिवस मनाना चाहिए l
अगर आप इस श्रंखला को अधिक से अधिक जनता के अंदर प्रसारित करेंगे तभी हम जम्मू कश्मीर के विमर्श का मुद्दा बदल सकते हैं अन्यथा नहींl इसलिए मेरा आप सभी से यही अनुरोध है श्रृंखला को अधिक से अधिक लोगों की जानकारी में लाया जाए।
कश्मीर को जड़ से समझइये
कुछ समय पहले कश्मीर स्टडी सर्किल में एक गोष्ठी आयोजित की गयी। कश्मीर को समझना गोष्ठी का उद्देश्य था। गोष्ठी को सम्बोधित करने वाले जम्मू कश्मीर स्टडी सर्किल के एक बेहद वरिष्ठ कार्यकर्त्ता थे , जो पिछले 8 सालों से कश्मीर पर अध्ययन रत हैं।
कुछ समय पहले कश्मीर स्टडी सर्किल में एक गोष्ठी आयोजित की गयी। कश्मीर को समझना गोष्ठी का उद्देश्य था। गोष्ठी को सम्बोधित करने वाले जम्मू कश्मीर स्टडी सर्किल के एक बेहद वरिष्ठ कार्यकर्त्ता थे , जो पिछले 8 सालों से कश्मीर पर अध्ययन रत हैं।
इस अध्ययन में कश्मीर की राजनैतिक, सामाजिक आर्थिक धार्मिक स्थिति भी शामिल हैं , पूरे प्रदेश का भ्रमण , तमाम लोगों , गुटों से बातचीत। न सिर्फ कश्मीर में बल्कि पूरे देश में।
रंजन जी ने कश्मीर में सबसे मुख्य समस्या मिस कम्युनिकेशन की बताई। मिस कम्युनिकेशन या भ्रामक जानकारी। ये भ्रामक जानकारी कश्मीरी लोगों में भी है और उससे ज्यादा शेष भारत में है।
इस भ्रामक जानकारी को फ़ैलाने में मीडिया राजनीति , राजनैतिक पार्टीयो सभी का योगदान है।
इस भ्रामक जानकारी को फ़ैलाने में मीडिया राजनीति , राजनैतिक पार्टीयो सभी का योगदान है।
उन्होंने कुछ उदाहरण देते हुए इस बात को स्पष्ट किया कि कश्मीर के नाम से हम जिस भूभाग को जानते हैं वो दरअसल चार मुख्य हिस्से हैं और हम लोगों में से ज्यादातर लोग जम्मू कश्मीर को तीन हिस्सों में जानते है -कश्मीर , जम्मू एवं लद्दाख।
गिलगिट और बाल्टिस्तान इसका चौथा भाग है और सबसे महत्वपूर्ण भाग भी और यही भाग करीब 5 देशो को आपस में मिलाता है। अफगानिस्तान , पाकिस्तान , चीन , भारत और कजाकिस्तान। सामरिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से बेहद महत्वपूर्ण भाग है ये भारत के लिए।
CPEC सड़क परियोजना इसी क्षेत्र से होकर गुजरती है। इसी क्षेत्र को काबू करने के लिए पहले US और ब्रिटेन ने कोशिश की लेकिन अब ये चीन के हाथ लगा। पाकिस्तान ने बेहद चालाकी से इस इलाके को पहले आक्युपाइड जम्मू कश्मीर से अलग किया। एक अलग प्रदेश बनाया और फिर चीन को इसमें प्रवेश करा दिया।
ऐसा ही एक उदाहरण ये है की हम समझते हैं की समस्त कश्मीर भारत के खिलाफ है। लेकिन ऐसा नहीं है। जम्मू कश्मीर के लद्दाख और जम्मू रीजन के दस जिलों में कोई अलगाववादी भावना नहीं है। आतंकवाद जम्मू रीजन में जरूर रहा है लेकिन अलगाववाद नहीं।
स्वंय कश्मीर के दस जिलों में से 5 जिलों में अलगाववादी भावना प्रबल है। श्रीनगर , अननतनाग , सोपोर बारामुला कुपवाड़ा। अन्य जिलों में ये अलगाववाद नहीं के बराबर है।ये अलगाववाद मुख्यतः सुन्नी मुस्लिम इलाकों में है।
इन पांच जिलों में भी अलग अलग पॉकेट हैं जहाँ ये पत्थरबाजी की घटनाएं होती हैं। जैसे श्रीनगर में डल लेक इलाके में कुछ नहीं है लेकिन लाल चौक इन घटनाओ में सबसे ऊपर है।कश्मीर में करीब 17% आबादी गुज्जर मुस्लिमो की है जो इन अलगाववादियों के पक्ष में बिलकुल नहीं हैं। न ही शिया मुस्लिम।
कारगिल की जनता इनके कतई खिलाफ है।
और हमारे मीडिया बंधु इसे ऐसे दिखाते हैं की समस्त कश्मीर जल रहा है , हाथ से निकलता जा रहा है। एक एक पत्थरबाजी की घटना को कवर करने के लिए पत्थरबाजों से ज्यादा पत्रकार वहां जमा होते हैं।
और हमारे मीडिया बंधु इसे ऐसे दिखाते हैं की समस्त कश्मीर जल रहा है , हाथ से निकलता जा रहा है। एक एक पत्थरबाजी की घटना को कवर करने के लिए पत्थरबाजों से ज्यादा पत्रकार वहां जमा होते हैं।
ऐसा ही उदाहरण धारा 370 का है। जो कुल जमा सिर्फ डेढ़ पेज की है लेकिन इसके इम्पैक्ट बेहद गंभीर है। जिसे ठीक से न हम समझते हैं और मजे की बात ये है की कश्मीरी भी नहीं समझते। एक तरह से पूरा भारत , कश्मीर एवं शेष भारत धारा 370 को जमीन से जोड़कर देखता है।
हम समझते हैं धारा 370 की वजह से हम कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते , वहां घर नहीं बसा सकते। और कश्मीरी जनता को समझाया जाता है की इसी धारा 370 की वजह से वो और उनकी जमीने बची हुई हैं वर्ना उनका सबकुछ छीन कर उन्हें कश्मीर से खदेड़ दिया जायेगा।
सच ये है की लगभग हर पहाड़ी क्षेत्र को बचाने के लिए धारा 370 371 372 हैं जिसके तहत यहाँ बाहरी आदमी जमीन नहीं खरीद सकता। नार्थ ईस्ट में तो प्रावधान और कड़े हैं।
लेकिन धारा 370 सिर्फ जमीन तक सीमित नहीं है। धारा 370 भारत के किसी कानून को जम्मू कश्मीर में लागू होने से पहले वहां की विधानसभा से मंजूरी की जरूरत होती है। और खेल यही शुरू होता है।
धारा 370 जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी होने की पहचान के बारे में भी प्रावधान रखती है , जिसका जमकर मिसयूज हुआ है। कुछ और ऐसे प्रावधान इसी धारा में ऐसे जोड़े गए हैं जो खुद कश्मीर की जनता के खिलाफ हैं और समस्त फायदे कुछ गिने चुने परिवारों तक सीमित रखते हैं।
और यदि धारा 370 की ये बातें जनता तक पहुँच सकें तो कोई हैरानी की बात नहीं की खुद कश्मीरी जनता इसे वापस लेने की मांग उठा दे।
एक उदाहरण केंद्रीय सहायता का भी है। जो पैकेज केंद्र सरकार लगातार कश्मीर को देती रही है। जो कश्मीर के कुछ जिलों तक सीमित होकर रह गया है।
एक उदाहरण केंद्रीय सहायता का भी है। जो पैकेज केंद्र सरकार लगातार कश्मीर को देती रही है। जो कश्मीर के कुछ जिलों तक सीमित होकर रह गया है।
हकीकत ये है की जम्मू कश्मीर में एरिया वाइज सबसे बड़ा लद्दाख , फिर जम्मू और तीसरे नंबर पर कश्मीर रीजन है। लेकिन संसाधनों को हथियाने में सबसे आगे कश्मीर ही है। यही बात टूरिज्म पर भी उतनी ही लागू होती है। कारगिल एवं उससे जुड़े क्षेत्रो को पर्यटन के लिए कभी प्रमोट नहीं किया गया।
जिस अनुच्छेद 35A (कैपिटल ए) का जिक्र आजकल जम्मू-कश्मीर पर विमर्शों के दौरान हो रहा हैं, वह संविधान की किसी भी किताब में नहीं मिलता।
जिस आर्टिकल की वजह से जम्मू-कश्मीर में लोग भारत का प्रधानमंत्री तो बन सकते हैं, लेकिन जिस राज्य में ये कई सालों से रह रहे हैं वहां के ग्राम प्रधान भी नहीं बन सकते : वह भारतीय संविधान का हिस्सा नहीं ?
जिस 35A की वजह से लोग लोकसभा के चुनावों में तो वोट डाल सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर में पंचायत से लेकर विधान सभा तक किसी भी चुनाव में इन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं : वह 35A भारत के संविधान में कैसे नहीं ?
हालांकि संविधान में अनुच्छेद 35a (स्मॉल ए) जरूर है, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं है।
इसका क्या मतलब ! क्या आर्टिकल 35A (कैपिटल) का वजूद नहीं ? क्या यह कोई संवैधानिक फरेब है ?
इसका क्या मतलब ! क्या आर्टिकल 35A (कैपिटल) का वजूद नहीं ? क्या यह कोई संवैधानिक फरेब है ?
भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताबों में होता है। लेकिन 35A कहीं भी नज़र नहीं आता।
दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है। यह चालाकी इसलिए की गई ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो।
दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है। यह चालाकी इसलिए की गई ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो।
भारतीय संविधान की बहुचर्चित धारा 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार देती है। 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था।
भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ देना सीधे-सीधे संविधान को संशोधित करना है। यह अधिकार सिर्फ भारतीय संसद को है। इसलिए 1954 का राष्ट्रपति का आदेश पूरी तरह से असंवैधानिक है।
अनुच्छेद 370 पूर्णतः हटाये जाने तक जम्मू कश्मीर को कुछ विशेषाधिकार देता है। लेकिन कुछ लोगों को विशेषाधिकार देने वाला यह अनुच्छेद क्या कुछ अन्य लोगों के मानवाधिकार तक नहीं छीन रहा है?
देश की पूर्व राजनैतिक सत्ताओं ने जम्मू-कश्मीर को लेकर जो संवैधानिक भ्रम और फरेब फैलाया है, उन भ्रमों को दूर होना ही चाहिए।
जरूरी है कि नागरिक मूल अधिकारों के हनन का जिम्मेदार 35A न सिर्फ चर्चाओं में रहे बल्कि एक देश एक कानून को स्थापित करने के क्रम में 370 की समाप्ति से पहले उसकी शाखाओं को काटने तक जाए ।
देश की जनता से राजनैतिक सत्ताओं के फरेब 35A को खत्म होने से पहले जानना जरूरी है।
देश की जनता से राजनैतिक सत्ताओं के फरेब 35A को खत्म होने से पहले जानना जरूरी है।
हम समझते हैं की समस्त कश्मीर भारत के खिलाफ है। लेकिन ऐसा नहीं है। जम्मू कश्मीर के लद्दाख और जम्मू रीजन के दस जिलों में कोई अलगाववादी भावना नहीं है। आतंकवाद जम्मूरीजन में जरूर रहा है लेकिन अलगाववाद नहीं।
इस Article 35A की वजह से ही
- भारत के संविधान के अंतर्गत जो मौलिक अधिकार है वह जम्मू कश्मीर के लोगों पर लागू नहीं होते।
- भारत के संविधान के अंतर्गत जो मौलिक अधिकार है वह जम्मू कश्मीर के लोगों पर लागू नहीं होते।
- हम भारत के नागरिक होकर भी जम्मू कश्मीर में जाकर बस नहीं सकते , वहां जमीन नहीं खरीद सकते , वहां जाकर कोई व्यवसाय नहीं कर सकते।
- जम्मू कश्मीर में ही 70 सालों से रह रहे अस्थायी निवासी भी वहां जमीन नहीं खरीद सकते , उन्हें और उनकी पीढ़ियों को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती , उनके बच्चो को उच्च शिक्षा , स्कॉलरशिप नहीं मिल सकती।
-Article 35A महिलाओ में भी लैंगिक भेदभाव करता है यदि कोई जम्मू कश्मीर के बाहर की महिला [Non-PRC = जिसके पास PRC (Permanant Resident certificate) नहीं है] अगर जम्मू कश्मीर के किसी पुरुष से विवाह कर लेती है तो उसे और उसके बच्चो को PRC और सारे अधिकार मिल जाते है
और यही अगर जम्मू कश्मीर की महिला भारत के ही किसी अन्य राज्य के पुरुष के साथ विवाह करती है तो उसे तो PRC के अधिकार मिल जायेंगे लेकिन उसके पति और बच्चो को नहीं मिलेंगे अर्थात वह अपनी ही Property अपने बच्चो को ट्रांसफर नहीं कर सकती और नही उसके बच्चे वहां पढ़ लिख या नौकरी कर सकते है।
अब आप देखिये फारुख अब्दुल्ला ने इंग्लैंड की लड़की से शादी की उसके बाद वह जम्मू कश्मीर की निवासी बन गई उनका बेटा हुआ उमर अब्दुल्ला ब्रिटिश लड़की से शादी कर उससे हुए बेटे को सब अधिकार हैl उमर अब्दुल्ला ने शादी की पंजाब की लड़की से तो उसे भी सारे अधिकार मिल गए और उसके बच्चो को भी l
लेकिन उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्लाह ने शादी की राजस्थान के वर्तमान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष "सचिन पाईलट " से तो सारा को तो सब अधिकार है लेकिन उसके बच्चों को अपनी मां की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है न ही "सचिन पाईलट " को।
इसी तरह रेणु नंदा का एक केस है जो कि जम्मू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर है उनका विवाह पश्चिम बंगाल के एक व्यक्ति से हो गया दुर्भाग्यवश कुछ सालों बाद उनके पति का देहांत हो गया और वह अपने दो बच्चों के साथ अपने माता-पिता के घर जम्मू वापस लौट आई
उनके बच्चे बड़े हो गए उनको उच्च शिक्षा आदि में दाखिला नहीं मिल सकता रेणु नंदा अपनी प्रॉपर्टी अपने बच्चों को ट्रांसफर नहीं कर सकतीl रेणु नंदा जम्मू कश्मीर की स्थायी निवासी है लेकिन उनके बच्चे वहां के निवासी नहीं है क्या इससे बड़ा मानवाधिकार उल्लंघन कोई हो सकता है क्या ?
और इसके विपरीत अगर कोई पाकिस्तान का लड़का जम्मू कश्मीर की लड़की से शादी कर लेता है तो उस लड़के को सारे अधिकार और भारत की नागरिकता मिल जाती है ।
यह Article 35A जो जम्मू कश्मीर के लोगो के मानवाधिकारों का हनन करता है और ये सब किया गया है Article 370 clause (1) sub clause (d) की आड़ में।
Article 35A तो Article 370 (1) (d) की ही एक उपज है New Article के रूप में ।
Article 35A तो Article 370 (1) (d) की ही एक उपज है New Article के रूप में ।
जबकि इसके आलावा भी Article 370 (1) (d) की आड़ में अनेक constitutional Order पास किये गए जिससे हमारे संविधान के 130 से ज्यादा article जम्मू कश्मीर में लागु नहीं होते
और exceptions & modifications के नाम पर कई provisions को amend कर दिया गया ताकि state को हर क्षेत्र में Extreem powers दी जा सके।
अब कुछ उदाहरण देखिये क्या क्या Amend किया गया ??
अब कुछ उदाहरण देखिये क्या क्या Amend किया गया ??
हमारे देश के संविधान का Article 1 और जम्मू कश्मीर का संविधान भी कहता है की J & K is the Integral Part Of India और article 3 राज्य की सीमाओं (Boundary) में amendment का अधिकार भारत सरकार को देता है
उसमे constitutional order के द्वारा amendment किया गया की केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर राज्य की boundary में कोई परिवर्तन नहीं कर सकती।
इसी तरह article 13 जो कि fundamental Rights की जान है जो यह कहता है की भारत में कोई भी ऐसा Law , Regulation , Order संविधान में आया और यदि वो fundamental Rights से किसी भी प्रकार से inconsistent है तो वो शून्य (Void) माना जायेगा
लेकिन यहाँ फिर से constitutional order के द्वारा amendment किया गया कि अगर जम्मू कश्मीर के लिए कोई law -regulation -order आया और वो fundamental rights से inconsistent है तो भी वो Void नहीं होगा अर्थात Valid (मान्य) होगा।
Article 238 जो कहता है कि भारत के अन्य राज्यों में विधायिका की अवशिष्ट शक्तियां (Residuary Powers ) केंद्र सरकार में निहित है उसको Amend कर दिया कि जम्मू कश्मीर राज्य के संदर्भ में यह शक्तियां राज्य में ही निहित होगी l
केंद्र सरकार की राज्य सूची (State List ) जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होंगी। अब ऐसे तीक्ष्ण सवाल मन में चुभते है कि किसी एक राज्य को Residuary Powers कैसे दी जा सकती है ??? जबकि यह केंद्र सरकार का अधिकार हैl सभी राज्यों के लिए राज्य सूची है तो फिर जम्मू कश्मीर के लिए क्यों नहीं ???
Article 368 जो कि यह कहता है कि संविधान के किसी भी provision में amendment का अधिकार सिर्फ देश की संसद को है लेकिन फिर से constitutional order पास किया गया कि Article 368 के अंतर्गत संविधान में amend किये गए provisions जम्मू कश्मीर राज्य पे लागू नहीं होंगे।
क्या देश की sovereign Body (संप्रभु सत्ता) अपनी power को इस हद तक delegate कर सकती है क्या कि उसके अपने खुद के ही हाथ कट जाये ?
क्या देश की सबसे बड़ी sovereign Body संसद Article 370 के द्वारा इस प्रकार की power का इस्तमाल कर सकती है क्या कि उसकी खुद की power ही क्षीण हो जाये और उसकी power दूसरे को delegate हो जाये।
Article 35A जम्मू कश्मीर को power delegate करता है और संसद खुद अपने हाथ काटती है।
Article 35A जम्मू कश्मीर को power delegate करता है और संसद खुद अपने हाथ काटती है।
इस धोखे की श्रृंखला में एक और constitutional order जारी किया गया और इस बार सुप्रीम कोर्ट के भी हाथ काट दिए जम्मू कश्मीर के लोग fundamental Rights के तहत article 32 को लेकर सुप्रीम कोर्ट तो आ सकते है
लेकिन जो article 135 और 139 जो सुप्रीम कोर्ट को Writ issue करने की और decision देने की power देता है , इन दोनों articles को जम्मू कश्मीर राज्य के लिए हटा दिया गया।
मतलब सुप्रीम कोर्ट उनकी बात तो सुन सकता है लेकिन कोई फैसला नहीं सुना सकता। क्या आप सोच सकते है कि आपके पास कोई आये तो आपको उससे मिलने का तो अधिकार हो पर आप उसे कुछ बोल नहीं सकते ?
ऐसे ही Article 370 (1) (d) की आड़ में अनेक constitutional Order पास किये गए जिससे हमारे संविधान कई प्रावधानों में जम्मू कश्मीर राज्य के लिए परिवर्तन कर दिया गया। जिसके कारण -
-जम्मू कश्मीर में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम लागू नहीं होता , एंटी रेप कानून लागू नहीं होता है लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हो सकती
-जम्मू कश्मीर में RTI लागू नहीं हो सकता , RTE (शिक्षा का अधिकार ) लागू नहीं हो सकता l
-जम्मू कश्मीर में RTI लागू नहीं हो सकता , RTE (शिक्षा का अधिकार ) लागू नहीं हो सकता l
- CBI , CAG , वहां किसी घोटाले की जांच नहीं कर सकते
-कश्मीर की महिलाओं पर शरीयत कानून लागू होता है l
-कश्मीर की महिलाओं पर शरीयत कानून लागू होता है l
-जम्मू कश्मीर के 30 % अल्पसंख्यक हिंदू, सिख को आरक्षण नहीं दिया जाता है , वहां के 30 % अल्पसंख्यक हिन्दू सिख को Majority का दर्जा मिला हुआ और 70 % मुस्लिमो को Minority का दर्जा मिला हुआ है।
- जम्मू कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है जबकि भारत की यह अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता हैl
- वहां के विधानसभा क्षेत्रो को DeLimitation करने का अधिकार भारत के DeLimitation कमिश्नर को नहीं है क्यों कि आज तक भारत के DeLimitation Commission को वहां लागू नहीं किया गया।
-आज सारे देश की राजनीती OBC ,ST और SC के इर्द -गिर्द चलती है l इन ओबीसी, एसटी-एससी नेताओं को एक बार जम्मू कश्मीर जाना चाहिए l आज जम्मू कश्मीर में 14% ST है l
1991 तक जम्मू-कश्मीर में ST को आरक्षण नहीं था 1991 में पहली बार ST को आरक्षण मिला और वह भी केवल शिक्षा और रोजगार में जबकि राजनीतिक आरक्षण तो आज भी नहीं है l पंचायत, विधानसभा, नगरपालिका इनमें कोई आरक्षण नहीं है SC को आरक्षण केवल जम्मू में है कश्मीर में नहीं l
अब आप कहेंगे एक ही राज्य में ऐसा कैसे हो सकता है ?? पूरे जम्मू कश्मीर में 5 लाख सरकारी कर्मचारी है जिसमें से 4 लाख कश्मीर घाटी में है वहां पर नौकरियों को जिले और संभाग के आधार पर बांट दिया गया
और कश्मीर घाटी में आरक्षण नहीं दिया गया 2007 में जब सुप्रीम कोर्ट का डंडा चला तो SC को पूरे जम्मू-कश्मीर में आरक्षण मिलना शुरू हुआ और ओबीसी को तो आज तक आरक्षण नहीं नहीं है l आरक्षण तो छोड़िये उनकी आज तक गणना तक नहीं हुई l
-- राष्ट्रपति के द्वारा चुनाव आयुक्त के चुनाव संबंधी नोटिफिकेशन को जब तक जम्मू कश्मीर का राज्यपाल जम्मू-कश्मीर के संविधान में नोटिफाई नहीं कर देता तब तक जम्मू कश्मीर में चुनाव करवाने का अधिकार भारतीय निर्वाचन आयोग को नहीं आता।
ऐसे ऐसे धोखे देश के संविधान के द्वारा किये गए।
ये Article 35A एक तरह से "भस्मासुर" है मतलब संविधान ने शक्ति दी (Article 370 (1) clause d) कि आप ( president) ये कार्य कर सकते है और आपने (President) उस शक्ति का इस्तेमाल कर के संविधान को ही संशोधित कर दिया ।
ये Article 35A एक तरह से "भस्मासुर" है मतलब संविधान ने शक्ति दी (Article 370 (1) clause d) कि आप ( president) ये कार्य कर सकते है और आपने (President) उस शक्ति का इस्तेमाल कर के संविधान को ही संशोधित कर दिया ।
मतलब जिस भगवान ने ही वरदान दिया उसी को भस्म करने चले।
देश के संविधान की गरिमा को नष्ट करने में कोई कसर बाकि नहीं रखी गयी और ये सब कुछ कांग्रेस नीत सरकार के तत्वाधान में हुआ।
देश के संविधान की गरिमा को नष्ट करने में कोई कसर बाकि नहीं रखी गयी और ये सब कुछ कांग्रेस नीत सरकार के तत्वाधान में हुआ।
राष्ट्रपति जी को किसी भी तरह से नया Article संविधान में जोड़ने का कोई अधिकार नहीं है ये अधिकार सिर्फ देश की संसद का है। इसलिए ये Article 35A देश की एकता विरोधी, मानवाधिकार विरोधी तो है ही साथ ही संविधान विरोधी भी है।
अतः देश के भले के लिए इसका हटना अनिवार्य है और ये जागरूकता का कार्य हम सब को मिलकर करना है। अतः आप सभी से अनुरोध है कि जितना भी हो सके ये जानकारी अधिक से अधिक लोगो के बीच प्रसारित कर एक जन चेतना लाएं ताकि न्याय से वंचित लोगो को न्याय मिल सके।
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