चमत्कार ...



तारीख थी २७ अक्टूबर, दिन था रविवार का और साल था २०१३ का ...

तभी अचानक मीडिया चैनलों को पटना रेलवे स्टेशन से पहला बम विस्फोट होने की सूचना मिली..
टीवी न्यूज मीडिया को रक्त सुगंध आ गयी थी,जितना उन्हें उम्मीद थी, उससे कहीं ज्यादा उन्हें मिल गया था।

फिर कुछ और भी धमाके हुए। भाजपा की हुंकार रैली के लिए गांधी मैदान में पहले से ही लाखों की भीड़ जमा थी।
विस्फोटों की श्रृंखला में 5 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 60 लोग घायल हो गए थे। कुछ राजनेता उम्मीद कर रहे थे कि रैली को रद्द कर दिया जायगा।
भूपेंद्र चौबे जैसे एंकर हाइपर हो चुके थे और "आतंक पर राजनीति" का नारा हवा में बुलंद कर चुके थे,जबकि फिलहाल किसी के पास भी कुछ विवरण नहीं था।
एनडीटीवी बार-बार मैदान के एक स्थान से धुआं उड़ाता दिखा रहा था। दिग्विजय सिंह अपने रंग में आ चुके थे और ट्वीटर पर उनकी गंदगी फैलने लगी थी।
उधर राजदीप सरदेसाई राजनेताओं से परिपक्वता की मांग करते हुए खुद जाहिलों की तरह भड़काऊ ट्वीट पर ट्वीट किये जा रहा था।
सीएनएन-आईबीएन धमाकों के साथ उतना ही जहर फैलाता जा रहा था, जितना अधिकाधिक संभव हो सकता था। TimesNow अपने एक कार्यकर्म में व्यस्त था।
और उस रोज़ उन सभी ने ,मैं दोहराता हूं, उन सभी ने बस एक चमत्कार को देखने से इनकार कर दिया था जो कि सबकी आँखों के सामने हुआ था ...

एक ऐसा चमत्कार जो सदियों में कभी एक बार होता है ..
यदि आप किसी टीम लीडर को यह कहते हुए सुनते हैं कि "हम ऐसा नहीं कर सकते हैं" तो यह किसी को भी चिंतित कर सकता है और ये चिंता करने की स्थिति भी है। ये अपने हथियार डाल देने जैसा होता है।
लेकिन कभी-कभी ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम यह नहीं जानते हैं कि हमारा लीडरआखिर क्या सोच रहा है। हमें उस स्थिति का कोई अंदाजा नहीं हो सकता है कि जिसमे वह गुजर रहा होता है।
हम सभी सचिन तेंदुलकर को देखते हैं और हम तुरंत कह सकते हैं कि उनमें प्रतिभा है। उनके मामले में हम यह भी जानते हैं कि इस प्रतिभा को सचिन 5 वर्ष की उम्र से निखारते रहे हैं।
उन्होंने कम उम्र से ही नियमित रूप से अपनी कला और कौशल का अभ्यास शुरू कर दिया था। पिछली एक ब्लॉग पोस्ट में मैंने इस तथ्य को आप सभी से साझा किया था कि कौशल और ज्ञान को स्थानांतरित किया जा सकता है।
प्रतिभा को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।

तो वास्तव में प्रतिभा क्या है?

प्रतिभा एक ऐसी चीज़ है जो व्यक्ति अपने जीवन के शुरुआती दौर से लगभग हर एक दिन में हासिल करता है।

कुछ लोग कहते हैं कि प्रतिभा स्वाभाविक है,लेकिन यह केवल आधा सच है।
हम अमिताभ बच्चन को देखते हैं और जिन्होंने उनकी पिछली फिल्में देखी हैं उन्हें पता है कि उनमें प्रतिभा है।
फिर हम उदय चोपड़ा को देखते हैं…

या फिर हम सागरिका घोष को देखते हैं ...

और हम तुरंत जान जाते हैं कि किसी दिए गए असाइनमेंट या स्थिति के लिए प्रतिभा गायब है।
ये अंतर हम कैसे जान सकते हैं?

यह काफी सरल है।आप किसी को आग से लड़ना सिखा सकते हैं।आप उन्हें समझा सकते हैं कि आग बुझाने की मशीन का उपयोग कैसे करें।आप उन्हें सिखा सकते हैं कि हाइड्रेंट का उपयोग कैसे करें।आप उन्हें सिखा सकते हैं कि कैसे एक इमारत को क्रमबद्ध तरीके से खाली किया जाए।
इन सभी का अभ्यास किया जा सकता है, सुधार किया जा सकता है और इसमें उत्कृष्टता हासिल की जा सकती है। जिसे सिखाया या स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है वह है "आग लगने पर शांत" रहना।

और वह एक प्रतिभा है।
यहां तक कि सबसे अच्छे प्रशिक्षित लोग भी आग लगने पर घबरा सकते हैं। वे सभी प्रशिक्षण भूल सकते हैं और घबराहट में अनर्थ कर सकते हैं। कुछ लोग अत्यंत परीक्षण परिस्थितियों में आग लगने पर शांत दिखाई देते हैं, भले ही वे अपने जीवन में पहली बार इसका सामना कर रहे हों।
इस वीडियो में एक उदाहरण देखें ...

15 जनवरी, 2009 को यूएस एयरवेज की उड़ान 1549 (कॉलसाइनस कैक्टस) पक्षियों के झुंड से टकरा गई थी और दोनों इंजन बंद हो गए थे।

और कैप्टन सुली सुलेनबर्गर के अंतिम शब्द थे..

"हम ऐसा नहीं कर सकते ... हम हडसन में जाने वाले हैं"।
एटीसी को विश्वास नहीं हुआ कि उसने अभी क्या सुना है।

हडसन में जाने वाले हैं ?
वाकई में ???

एक अविश्वसनीय घटना हो चुकी थी इसलिए कैप्टन सुलेनबर्गर रेडियो और विमान दोनो संभाल रहे थे ( रेडियो सामान्य रूप से सह-पायलट द्वारा संचालित किया जाता है )
कैप्टन सुलेनबर्गर जानते थे कि वह पास के किसी हवाई अड्डे तक नहीं पहुँच सकते है और न्यूयॉर्क में हडसन नदी ही एकमात्र स्थान था जहाँ वो कुछ कर सकते थे ।

उस रोज़ उन्होंने अपनी जिंदगी भर के सभी कौशल और अनुभव को समेटा और कुछ अद्भुत कर डाला हडसन नदी के पानी पर...
उन्होंने जहाज को हडसन नदी के पानी पर उतार कर ही दम लिया.

वो उड़ान केवल 6 मिनट तक चली। सभी 155 यात्रियों और चालक दल के सदस्यों को बचा लिया गया। वे इसे "हडसन पर चमत्कार" कहते हैं। यह वास्तव में एक चमत्कार था और जिसने सैकड़ों इंसानों की जान बचाई थी..
कैप्टन सुलेनबर्गर और उनके चालक दल अमेरिका के राष्ट्रीय नायक बन चुके थे।

कैप्टन सुलेनबर्ग ने एक ऐसी स्थिति में जो कर दिखाया था वह पहले कभी उन्होंने अनुभव नहीं किया था।
यह होती है प्रतिभा..
जब आप दूसरों की सुरक्षा और सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार हों, तो यह प्रतिभा सबसे महत्वपूर्ण है। यह कैप्टन सुलेनबर्गर का उड़ान कौशल और प्रतिभा बल था जिसने सैकड़ों की जान बचाई थी उस रोज़ ...
भारतीय मीडिया के लोग और कुछ राजनीतिक दल, जो 27 अक्टूबर को गांधी मैदान में एक समान चमत्कार नहीं देख सके थे वे या तो अंधे थे या बेहद मूर्ख।
जमीन पर लोगों का एक समुद्र था, लाखों लोग थे वहां और वहां लगतार बम विस्फोट हुए जा रहे थे. ऐसे में कई ऐसे लोग थे जिन्होंने इस कार्यक्रम को रद्द करने के लिए भाजपा और नरेंद्र मोदी को सुझाव दिया। लेकिन न तो मोदी और न ही बीजेपी ने रद्द किया किन्तु अपनी बात पर कायम रहे।
उन्होंने न केवल इस कार्यक्रम को पूरा किया बल्कि अंत में मोदी ने भीड़ से सावधानीपूर्वक और शांतिपूर्ण तरीके से घर जाने का अनुरोध किया। उन्होंने उन्हें सुरक्षित घर पहुंचने की सलाह दी। आश्चर्यजनक रूप से, 7 लाख से अधिक की भीड़, घबराई नहीं।
भीड़ ने न तो हडकम्प मचाया और ना भगदड़। यह भीड़ एक विमान में 155 यात्रियों की नहीं थी। इनका अनुमान 7 से 10 लाख के बीच था।

ये तस्वीर देखिये और अंदाज़ा लगाइए कि उस दिन क्या हो सकता था
चरित्र संकट में विकसित नहीं होता बल्कि सामने आता है। नरेंद्र मोदी और भाजपा के अन्य लोगों ने यही दिखाया। उन्होंने धैर्य और साहस दिखाया और असाधारण नियंत्रण के तहत एक बड़ी भीड़ को शांत बनाए रखा। डर से भगदड़ के परिणाम अकल्पनीय हैं..
हम सब जानते हैं की कुछ ही मिनटों में हजारों लोग मारे जा सकते थे।

भीड़ और नेतृत्व की परिपक्वता को पहचानने और उस शख्स की तारीफ करने की बजाय जिसने उन्हें शांत बनाये रखा, अगले रोज़ मीडिया मेड्स अपने राजनीतिक अंक बटोरने में लग चुके थे।
हर चपडगंजू जिसने "राजनीतिकरण नहीं करना चाहिए" का भोंपू बजा रखा था , असलियत में कर वही रहा था.

अगले दिन राजदीप सरदेसाई ने दिग्विजय सिंह को अपने चैनल पर और अधिक ज़हर फ़ैलाने के लिए बुला लिया था।
दिग्गी बाबू के चरित्र को हम औरआप अच्छे से जानते हैं और ये भी जानते है कि अगर राजदीप उसे टिप्पणी करने के लिए कहता है तो उसके पीछे वास्तविक उद्देश्य क्या हैं।
और भी कुछ मीडिया पपलू थे जो कथा बांच रहे थे कि बीजेपी लाभार्थी होगी इसलिए भाजपा पर संदेह की उंगलियां उठाई जाने लगीं।

और फिर बाद में इन सबके पीछे इंडियन मुजाहिदीन के हाथ का खुलासा हुआ।
नीतीश कुमार का यह कहना और भी बेवकूफी भरा था कि हमलों पर "इंटेल" नहीं था।

यह आदमी कितना गैर ज़िम्मेदार हो सकता है?

आपके पास भारत में सबसे अधिक खतरे पर मोदी जी हैं। रैली मैदान में आपके लाखों लोग हैं। आपके पास शहर में लाखों लोग हैं जो मैदान तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।
आपके पास बस-स्टेशन और रेलवे स्टेशन हैं। क्या आपको गंभीर सुरक्षा मुद्दों और खतरों की उम्मीद नहीं थी? क्या आप इतने बेवक़ूफ़ हैं जो दावा करते हैं कि आपको एक इंटेल रिपोर्ट की आवश्यकता है?

वाकई में ???
यानी सीरियसली ??
और हमारे चैनलों ने आमतौर पर इस तथाकथित बकवास रिपोर्ट पर बहस भी की।

केवल यह बताने के लिए कि इस तरह के मामले में किसी को भी एक इंटेल रिपोर्ट की आवश्यकता नहीं है, पूर्व गृह सचिव आरके सिंह सामने थे।
ये तो वो किस्सा हुआ कि मेरे मेहमानों ने मुझे सूचित किया कि वे आ रहे हैं, लेकिन उन्होंने मुझे नहीं बताया कि वे चाय पीना पसंद करेंगे तो मैंने दूध का इंतजाम नहीं किया...
NDTV और CNN-IBN में वही हो रहा था जिसकी उम्मीद थी.

चर्चा हो रही थी कि धमाकों से किसे फायदा होगा।
यह केवल अर्नब गोस्वामी थे जिन्होंने सबसे महत्वपूर्ण और उचित प्रश्न पूछा था कि अगर अहमदाबाद में नीतीश की रैली में यही बात होती तो क्या होता?

आप आसानी से अनुमान लगा सकते हैं।
सुर्खियों में होता
"हत्या का प्रयास",
"नीतीश गुजरात में निशाने पर ",
"मोदी को इस्तीफा देना होगा",
"मोदी नीतीश की रैली के लिए सुरक्षा में विफल" और भी बहुत कुछ चल रहा होता ।
इसके बजाय TimesNow को छोड़कर बाकी चैनलों पर रैली को चलाते रहने के लिए बीजेपी को दोष दिया जा रहा था ।
किन्तु सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा नेताओं ने असाधारण कौशल और मन की उपस्थिति का प्रदर्शन किया। उनकी अपनी जान खतरे में थी किन्तु उन्होंने असाधारण तरीके से शांति का प्रदर्शन करते हुए भीड़ को संभाले रखा.
ऐसा अपेक्षा कमजोर नेताओं और ढोंगियों से नहीं की जा सकती है। उन्होंने ना सिर्फ रैली को संबोधित किया बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि भीड़ के साथ कोई बड़ी आपदा न हो और सब ठीक ठाक अपने अपने घर पहुँच जाएँ ।
इतना ही नहीं, एक भी भाजपा नेता ने धमाकों का उल्लेख अपने भाषण में नहीं किया या इशारा तक किया और ना ही अपने भाषणों में सुरक्षा की विफलताओं का राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास किया।
यह एक दुर्लभ सम्मान के साथ परीक्षा पास करने के बराबर था।
ऐसे लोग वही होते हैं जिन पर आप अपने देश और सुरक्षा के साथ भरोसा कर सकते हैं।

उस रोज़ गाँधी मैदान में बिहारी भाइयों और बहनों ने पूरे देश के लिए संकट के समय में प्एक प्रशंसनीय कार्य और एक मिसाल कायम की थी ।
पर अफ़सोस किसी भी मीडियाकर्मी ने सामान्य लोगों द्वारा किये गए इस अभूतपूर्व और अविश्वसनीय साहस को नहीं पहचाना था ।

उस रोज़ देश ने वास्तव में "गांधी मैदान में एक बार फिर चमत्कार" देखा था

Original Post link : http://www.mediacrooks.com/2013/10/miracle-at-gandhi-maidan.html 



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