गुजराल साहेब, इस बार की लड़ाई पिछले युद्धों की तरह साफ सुथरी नहीं होगी...

ये तो आप भी मानते हैं कि कैसे देश तोड़क शक्तियां भारत को अंदर और बाहर, दोनों तरफ से कमजोर करने में जुटी हुई हैं .

1990 की बात है , वी पी सिंह सरकार के समय पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से रूसी फौज हटने के बाद सारे आतंकवादियों को जम्मू-कश्मीर में लड़ने के लिए भेज दिया था.
आतंकवादी 26 जनवरी 1990 को कश्मीर की स्वतंत्रता की घोषणा करने वाले थे.
उस समय पाकिस्तान के विदेश मंत्री याकूब खान ने भारत आने का निर्णय लिया जिससे वे तनाव कम कर सके. भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री आई के गुजराल से मिलने के बाद वे दोनों साउथ ब्लॉक के गलियारे से बाहर निकल रहे थे.
एकाएक साहिबजादा ने कहा कि "गुजराल साहेब, इस बार की लड़ाई पिछले युद्धों की तरह साफ सुथरी नहीं होगी. आप की नदियां, पर्वत, शहर सब आग में झुलस जायेंगे. एक उस तरह की आग जिसको आप सोच भी नहीं सकते हैं और पहले दिन ही यह सब हो जाएगा."
गुजरात अचकचा गए. वह समझ गए कि साहिबजादा उनको परमाणु बम गिराने की धमकी दे रहे हैं. उन्होंने अपने आप को संभाला और साहिबजादा से कहा कि "ऐसी बातें ना करें तो अच्छा है, याकूब साहब, क्योंकि हमने भी उन्ही दरियों का पानी पिया है जिनका आपने...".
गलियारे में ऐसी धमकी क्यों दी? 

मीटिंग रूम में क्यों नहीं? 

क्योकि मीटिंग रूम में कही गयी हर बात को एक अधिकारी नोट करता है जिससे वह वार्ता ऑफिसियल रिकॉर्ड में दर्ज हो जाती है.
उस समय वायु सेना के चीफ एस के मेहरा को प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने विचार-विमर्श के लिए बुलाया. गुजराल उस मीटिंग में उपस्थित थे. उन्होंने मेहरा से पूछा कि क्या वह एक पाकिस्तानी लड़ाकू जहाज को भारत पर बम गिराने से रोक सकते हैं.
मेहरा ने जवाब दिया की एयर फोर्स इस बात की गारंटी नहीं दे सकती. लेकिन अगर ऐसी घटना हुई तो हमें वापस जवाब देना होगा. 

और फिर मेहरा ने पूछा कि अगर वायु सेना को जवाबी कार्रवाई करनी होगी तो क्या मैं देख सकता हूं कि हमारा परमाणु बम कैसा दिखायी देता है?
उन्होंने ये भी पूछा की किस प्लेटफॉर्म या जहाज पर इसे लादना होगा और कैसे इसको डिलीवर करना होगा. 
मेहरा के अनुसार गुजराल एकदम से घबरा गए. मेहरा के प्रश्न में यह छुपा हुआ था कि भारत के पास उस समय ना तो बम था, ना उसको डिलीवर करने की क्षमता.
इस घटना का वर्णन शेखर गुप्ता अपने लेख में कर चुके हैं और पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने अपनी पुस्तक Neither A Hawk Nor A Dove में इस "धमकी" की पुष्टि की है.
पाकिस्तान के इस ब्लैकमेल को पहली बार भाजपा की वाजपेई सरकार ने तोड़ा जब उन्होंने संसद पे आतंकवादी हमले के बाद मुशर्रफ की “धमकी” के बावजूद सीमा से सेना हटाने से मना कर दिया.
अब आप ये बताइए कि राहुल तथा अन्य "युवा" नेता कैसे सीमा पार से आने वाले आतंकवाद का मुकाबला करेंगे? 

कैसे जम्मू और कश्मीर, आतंकवाद, नक्सलवाद से निपटेंगे? 

कैसे पड़ोस के फर्जी "साम्यवादी" देश से खतरे का मुकाबला करेंगे?
ये तो अब सबको पता है कि कैसे नरसिम्हा राव सरकार ने सुखोई विमान का समझौता साइन होने के पहले ही लगभग 17 सौ करोड़ रुपए रूसी सरकार को दे दिया था.
विपक्ष के नेता वाजपेयी जी ने उस समय देवे गौड़ा सरकार के रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव से मिलकर स्थिति को स्पष्ट किया और राष्ट्र हित में सुखोई विमान को चुनाव का मुद्दा बनाने से मना कर दिया.
आप ध्यान दे तो कांग्रेस के सिवाए अन्य मुख्य विपक्षी नेता,जिनमे मुलायम और मायावती भी शामिल है, रफाल पे चुप है.
राहुल अपने प्रश् -कि रफाल के लिए इतने हज़ार करोड़ क्यों दिए और इतने क्यों नहीं -के द्वारा दुश्मन को यह बतलाना चाहते है कि इस विमान से कौन से हथियार कैसे गिराए जा सकते है.
कुछ हथियार अत्यधिक खतरनाक है, जिसके बारे में कोई भी जिम्मेवार व्यक्ति या सरकार बात नहीं करेगी और ना करनी चाहिए. 
कई लोग यह मानते है कि भारत को देश तोड़क शक्तियों से खतरा है जो आतंकवाद, जातिवाद, धर्मपरिवर्तन के द्वारा राष्ट्र के टुकड़े-टुकड़े अंदर से कर देना चाहते है.
लेकिन राष्ट्र को एक अन्य खतरा उन लोगो की तरफ से है जो राष्ट्र की वाह्य सुरक्षा को जानबूझकर कमजोर कर देना चाहते है. 
इसीलिये इन लोगो ने दस वर्ष सत्ता में होते हुए "सस्ते" रफाल मिलने के बावजूद विमान नहीं खरीदाथा..

बाक़ी आप समझदार हैं ... 
(अमित सिंघल जी की पोस्ट के सम्पादित अंश)

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