५८ साल पहले भारत ने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को दोस्ती का पैगाम दिया था।यह पैगाम हिंदुस्तान से पाकिस्तान जाने वाली नदियों के पानी पर तैरता हुआ सरहद पार पहुंचा था।भारत ने पाकिस्तान की अवाम की भूख और प्यास बुझाने के लिए अपनी नदियों का पानी दिल खोल कर छोड़ दिया था...
उरी हमले ने पानी सर के ऊपर पहुंचा दिया था और भारत ने साफ कर दिया था कि खून और पानी साथ नहीं रहेंगे।
सिंधु जल समझौते की समीक्षा तभी शुरू हो गयी थी और भविष्य में उठाने वाले कठोर क़दमों की तैयारी भी तभी शुरू कर दी गयी थी।
सिंधु जल समझौते की समीक्षा तभी शुरू हो गयी थी और भविष्य में उठाने वाले कठोर क़दमों की तैयारी भी तभी शुरू कर दी गयी थी।
२०१६ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में पीएमओ में उच्चस्तरीय बैठक में सिंधु नदी जल समझौते की समीक्षा हुई थी और उस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल,विदेश सचिव एस जयशंकर,केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशि शेखर और पीएमओ के अधिकारी मौजूद थे।
सभी लोगों की राय थी कि भारत इस संधि का पूरा फायदा नहीं उठा पा रहा और पाकिस्तान इस का बेजा फायदा उठा रहा है।
और अब जो नितिन गड़करी का जो ट्वीट आया है वो उसी तैयारी का नतीजा है..
और अब जो नितिन गड़करी का जो ट्वीट आया है वो उसी तैयारी का नतीजा है..
मोदी जी ने पाकिस्तान को अंदर से तोड़ने व और सुखाने के लिए यह काम पहले ही शुरू कर दिए थे, जिसका संज्ञान भले ही भारत की मीडिया ने नही लिया था लेकिन पाकिस्तान की मीडिया इसको लेकर चिंतन पहले से ही कर रही है।
जब से नरेंद्र मोदी जी की सरकार आयी वह कई बार रिवर लिंकेज प्रोजेक्ट और साथ मे भारत पाकिस्तान के बीच 1960 में हुयी 'इंड्स वाटर ट्रीटी' को लेकर इशारा करते रहे है। यहां भारत के लोगो को तो वह शायद कम ही समझ मे आया था लेकिन पाकिस्तान में लोगो को 2016 से थोड़ा थोड़ा समझ मे आगया था।
संधि तोड़ दो , पानी रोक दो , ये कर दो , वो कर दो वाली चिल्लम चिल्ली से पहले आपको समझना होगा सिंधु नदी का तंत्र।
सिंधु नदी का उद्गम मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में है। पश्चिम की ओर बहती हुई यह नदी भारत में जम्मू कश्मीर के लद्दाख जिले से प्रवेश करती है।
सिंधु नदी का उद्गम मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में है। पश्चिम की ओर बहती हुई यह नदी भारत में जम्मू कश्मीर के लद्दाख जिले से प्रवेश करती है।
इस भाग में यह एक बहुत ही सुंदर दर्शनीय गार्ज का निर्माण करती है। इस क्षेत्र में बहुत-सी सहायक नदियाँ जैसे – जास्कर, नूबरा, श्योक, गिलगित, तोची , गोमल तथा हुंज़ा दरास इस नदी में मिलती हैं। सिंधु नदी बलूचिस्तान तथा गिलगित से बहते हुए अटक में पर्वतीय क्षेत्र से बाहर निकलती है।
सतलुज, ब्यास, रावी, चेनाब तथा झेलम आपस में मिलकर पाकिस्तान में मिठानकोट के पास सिंधु नदी में मिल जाती हैं। इसके बाद यह नदी दक्षिण की तरफ बहती है तथा अंत में कराची से पूर्व की ओर अरब सागर में मिल जाती है। सिंधु नदी के मैदान का ढाल बहुत धीमा है।
सिंधु द्रोणी का एक तिहाई से कुछ अधिक भाग भारत के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल तथा पंजाब में तथा शेष भाग पाकिस्तान में स्थित है। लंबी सिंधु नदी की लंबाई लगभग 2900 Km है।
पाकिस्तान की पेयजल की व्यवस्था काफ़ी कुछ इसी पर निर्भर है।पाकिस्तान की करीब 2.6 करोड़ एकड़ कृषि भूमि भी इसी पर निर्भर है।और तो और पाकिस्तान में बाढ़ और सूखे के हालात बहुत हद तक से इसी नदी पर निर्भर है।
सिंधु नदी का पानी अगर भारत रोक देता है तो पाकिस्तान बूंद बूंद के लिए तरस जाएगा और पुलवामा हमले के बाद देशभर में इसे लेकर काफी बहस भी हो रही है।लेकिन भारत के लिए क्या यह फैसला लेना इतना आसान है और किन किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है ?
इसके लिए आपको जानना होगा कि संधि है क्या ...
1960 में हुई 'इंड्स वाटर ट्रीटी' दरअसल वर्ल्ड बैंक की मध्यस्तता से भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐसी सन्धि है जिसने इंड्स यानी सिंधु नदी प्रणाली की उन 6 नदियों का बंटवारा था जो तिब्बत के पलटू से निकल भारत होते हुये पाकिस्तान में जातीहै।
1960 में हुई 'इंड्स वाटर ट्रीटी' दरअसल वर्ल्ड बैंक की मध्यस्तता से भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐसी सन्धि है जिसने इंड्स यानी सिंधु नदी प्रणाली की उन 6 नदियों का बंटवारा था जो तिब्बत के पलटू से निकल भारत होते हुये पाकिस्तान में जातीहै।
सन्धि में अनुसार पूर्वी हिस्से की तीन नदियों रावि, व्यास और सतलज नदी और उसके जल पर पूर्ण नियंत्रण भारत का है और पश्चिम की तीन नदियों इंड्स(सिंधु), चेनाब और झेलम के पानी पर पाकिस्तान का नियंत्रण है।
एक दिक्कत यह थी कि पाकिस्तान को 136 MAF(मीन एवरेज फ्लो) का पानी मिल रहा था और भारत को उससे बहुत कम 33 MAF पानी था इसलिये यह तय हुआ कि पाकिस्तान के नियंत्रण में आने वाली नदियों सिंधु, चेनाब और झेलम का 20% पानी भारत को सिंचाई, बिजली बनाने और जलमार्ग के लिए उपयोग करने के लिए मिलेगा।
यह ट्रीटी इतनी मजबूत मानी जाती है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 व 1971 का युद्ध होने के बाद भी इसपर कोई असर नही पड़ा है,लेकिन अब मामला गर्मा गया है। इसका कारण यह है कि पहले तो भारत ने अपने हिस्से में आई नदियों पर तेजी से बांध बना कर, पाकिस्तान को जाते पानी को लगभग रोक दिया है।
और जो जा भी रहा है उसका फ्लो इतना कम है जो पाकिस्तान की सिंधु नदी के बेसिन को कमजोर कर रहा है। भारत का इरादा है कि अपने हिस्से के 100% पानी को सिंचाई के लिये उपयोग में लाना है। यह पाकिस्तान के लिये बुरी खबर है क्योंकि कालांतर में पाकिस्तान की कृषि भूमि जहां बंजर होगी।
वही पर सिंधु नदी में पानी की आवक कम होने के कारण समुद्र का खारा पानी ऊपर चढ़ आयेगा और अच्छी जमीन को कृषि के लिये अनुपयोगी बना देगा।
यही नही भारत ने पाकिस्तान के नियंत्रण की सिंधु, चेनाब और झेलम नदी के अपने हिस्से के पूरे 20% पानी का उपयोग करने का निर्णय किया है।
और वो कैसे ??
यही नही भारत ने पाकिस्तान के नियंत्रण की सिंधु, चेनाब और झेलम नदी के अपने हिस्से के पूरे 20% पानी का उपयोग करने का निर्णय किया है।
और वो कैसे ??
अभी तक भारत सिर्फ लगभग 8% पानी का उपयोग करता रहा है और शेष 12% पिछले 58 वर्षों से पाकिस्तान जाता रहा है। मामला सिर्फ इतना ही नही है, भारत ने इससे आगे जाकर सिंधु, चेनाब, झेलम और रावि नदी को 'राष्ट्रीय जलमार्ग' घोषित कर दिया है जो जल द्वारा ट्रांसपोर्ट और टूरिस्म को बढ़ावा देगा।
इसमे नदियों के पानी को तो रोका नही जायेगा लेकिन उसको जगह जगह रोका जायेगा, जिससे उसका प्रवाह धीरे हो जायेगा जो पाकिस्तान स्थित सिंधु नदी प्रणाली को कमजोर हो जाएगी।
यह मोदी जी की सरकार का एक महत्वकांशी मास्टरस्ट्रोक है जो जहां पाकिस्तान के कृषि उद्योग के लिये धातक होगा वही उसके आंतरिक आर्थिक विकास के स्रोतों को एक दशक में ही तोड़ कर रख देगा।
यहां यह भी बताना महत्वपूर्ण है कि पाकिस्तान को भारत से बर्बाद होते आरहे पानी की इतनी आदत लग चुकी थी कि उसने 1976 से कोई भी बड़ा बांध नही बनाया है।
और मोदी जी ने पाकिस्तान की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर इंड्स रिवर ट्रीटी से मिले अपने हक को पूरा लेने के लिये सारी परियोजनाओं पर युद्धस्तर पर काम करना शुरू कर दिया है।
2014 में मोदी सरकार आने के बाद अब भारत अपने हिस्से का 20% जल उपयोग करने के लिए डैम्स और हाइड्रो-पावर प्रोजेक्ट का निर्माण कर रहा है.
जम्मू कश्मीर में स्थापित बांध :
अगस्त 2018 तक जम्मू-कश्मीर में कुल 14 ऑपरेशनल डैम्स हैं. सभी की संयुक्त विद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 3,149MW है.
जम्मू कश्मीर में स्थापित बांध :
अगस्त 2018 तक जम्मू-कश्मीर में कुल 14 ऑपरेशनल डैम्स हैं. सभी की संयुक्त विद्युत उत्पादन क्षमता लगभग 3,149MW है.
निचली झेलम -105 मेगावाट
दुमखर बांध -45 मेगावाट
सलाल परियोजना - 690 मेगावाट
दुलहस्ती बांध -390 मेगावाट
सेवा-2 बांध -120 मेगावाट
उरी-2 प्रोजेक्ट -480 मेगावाट
निमु बेजगो बांध -45 मेगावाट
चुटक बांध -44 मेगावाट
बागलीहर बांध -900 मेगावाट
किशनगंगा जलविद्युत संयंत्र - (330 मेगावाट)
दुमखर बांध -45 मेगावाट
सलाल परियोजना - 690 मेगावाट
दुलहस्ती बांध -390 मेगावाट
सेवा-2 बांध -120 मेगावाट
उरी-2 प्रोजेक्ट -480 मेगावाट
निमु बेजगो बांध -45 मेगावाट
चुटक बांध -44 मेगावाट
बागलीहर बांध -900 मेगावाट
किशनगंगा जलविद्युत संयंत्र - (330 मेगावाट)
जम्मू-कश्मीर में निर्माणाधीन बांध :
भारत पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय सिंधु जल संधि के तहत अपने हिस्से के पूरे 20% पानी को इस्तेमाल करने के लिए पिछले 4.5 वर्षों में सिंधु जल बेसिन में कई हाइड्रो-पावर परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है और निर्माणाधीन परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया है.
भारत पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय सिंधु जल संधि के तहत अपने हिस्से के पूरे 20% पानी को इस्तेमाल करने के लिए पिछले 4.5 वर्षों में सिंधु जल बेसिन में कई हाइड्रो-पावर परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है और निर्माणाधीन परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाया है.
जम्मू-कश्मीर में 3,337 मेगावॉट क्षमता की हाइड्रो-पावर परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं.
गंदरबल प्रोजेक्ट - 93 MW
निचली कलनाई बांध -48 MW
ऊझ प्रोजेक्ट -206 MW
शाहपुर कंडी बांध -196 MW
किरु हाइड्रो -624 MW
रटल हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट -850 MW
पाकल दुल बांध -1000 MW
गंदरबल प्रोजेक्ट - 93 MW
निचली कलनाई बांध -48 MW
ऊझ प्रोजेक्ट -206 MW
शाहपुर कंडी बांध -196 MW
किरु हाइड्रो -624 MW
रटल हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट -850 MW
पाकल दुल बांध -1000 MW
जम्मू-कश्मीर प्रस्तावित और स्वीकृत परियोजनाएं
केवल जम्मू-कश्मीर में 3,716 मेगावॉट बिजली क्षमता की अतिरिक्त हाइड्रो पावर परियोजनाएं पहले ही स्वीकृत हैं और अनुमति के विभिन्न चरणों के तहत है.
कवार परियोजना -540 MW
किर्थई 1 और 2 प्रोजेक्ट -1320 MW
सावलकोटपरियोजना -1856 MW
केवल जम्मू-कश्मीर में 3,716 मेगावॉट बिजली क्षमता की अतिरिक्त हाइड्रो पावर परियोजनाएं पहले ही स्वीकृत हैं और अनुमति के विभिन्न चरणों के तहत है.
कवार परियोजना -540 MW
किर्थई 1 और 2 प्रोजेक्ट -1320 MW
सावलकोटपरियोजना -1856 MW
आने वाले समय में भारत सिंधु बेसिन में अपने हिस्से के पानी का पूरा (20%) उपयोग करेगा और जम्मू कश्मीर में 10,000 मेगावाट से अधिक स्थापित हाइड्रो पावर क्षमता होगी।इसमें हिमाचल प्रदेश और पंजाब में सिंधु बेसिन के तहत चल रही परियोजनाएं शामिल नहीं हैं।
यहां सबसे बड़ी बात है कि पाकिस्तान पानी को लेकर भारत की शिकायत कहीं नहीं कर सकता, यदि वो भारत की शिकायत वर्ल्ड बैंक या युनाइटेड नेशन में करेगा तो उसको निराशा ही हाथ लगेगी. क्युकी भारत ने किसी संधि का उल्लंघन नहीं किया है.
अभी तक भारत के हिस्से के पानी की एक बहुत बड़ी मात्रा पाकिस्तान इस्तेमाल करता आया है, क्युकी नदियों का पानी रोकने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर के आभाव में भारत के हिस्से की तीनों पूर्वी नदियों व उसकी सहायक नदियों का काफी सारा पानी पाकिस्तान बहकर चला जाता है.
सबसे मज़ेदार बात ये है कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत अफगानिस्तान में काबुल नदी पर भी डैम बना रहा है. भारत ने सलमा डैम बनाने में अफगानिस्तान की मदद की है.
यानी अब मार दो तरफ़ से ...
यानी अब मार दो तरफ़ से ...
पाकिस्तान को इतना पानी मिलने के बाद भी वहां के लोग दूषित पानी पीने को मजबूर थे. अब जब भारत पूरी तरह से अपने पानी का हिस्सा पाकिस्तान जाने से रोक देगा तो पाकिस्तान की क्या स्थिति होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.
इंडस ट्रीटी के अंतर्गत भारतीय हिस्से के पानी का युद्ध स्तर पर 100% पानी का उपयोग करने के लिए शुरू की गई परियोजनाओं का निर्णय, मोदी सरकार का एक ऐसा निर्णय है जिसके पाकिस्तान के लिए धातक परिणाम, अपरिवर्तनीय है।
#जयहिंद
#जयहिंद
*ये सारी जानकारी विभिन्न स्रोतों से समेटी गयी है , जिसमे पुष्कर अवस्थी जी , अभिजीत श्रीवास्तव की फेसबुक पोस्ट्स, लोकसभा और राज्यसभा टीवी के कुछ प्रोग्राम्स और विकिपीडिया शामिल है
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