कांग्रेस का मकडजाल


आज आपको एक ऐसे मकड़जाल के बारे बताते हैं जो एक पत्रकार-इतिहासकार-लेखक-राजनीतिज्ञ-नौकरशाह को दूसरे पत्रकार-इतिहासकार-लेखक-राजनीतिज्ञ-नौकरशाह से मिलाता है।

कांग्रेस-कम्युनिस्ट प्रतिष्ठान में लगभग हर हाई-प्रोफाइल व्यक्ति एक-दूसरे से संबंधित है, चाहे वह राजनीति या नौकरशाही या पत्रकारिता में हो। कुलदीप नायर, तवलीन सिंह और संजय बारू की हालिया किताबें भी यही बताती हैं। मैंने श्वेताँक जी के अंग्रेज़ी लेख के हिन्दी रूपांतरण की कोशिश की है।

जनरल डायर का राक्षसी कृत्य, क्रूर जलियांवाला बाग हत्याकांड याद है आपको?यहां तक ​​कि कट्टर-साम्राज्यवादी विंस्टन चर्चिल ने इसे "राक्षसी घटना" के रूप में निंदा की थी।
जनरल रेजिनाल्ड डायर और उनके कार्यों को पंजाब के गवर्नर सर माइकल ओ डायर और भारत की औपनिवेशिक सरकार द्वारा लॉर्ड चेलेफोर्ड द्वारा समर्थित किया गया था और ऐसा होना लाज़िमी ही था ..

लेकिन, जनरल डायर और माइकल ओ'डायर (जिन्हें बाद में उधम सिंह ने गोली मार दी थी) के भारत में भी प्रशंसक थे। सूची में प्रमुख नाम कोई और नहीं बल्कि लाहौर के दीवान बहादुर कुंज बेहारी थापर थे।

वास्तव में, स्वर्ण मंदिर प्रबंधन ( वर्तमान एसजीपीसी ) ने डायर को एक किरपान और एक सिरोपा के साथ एक लाख पचहतर हज़ार रुपए भेंट किए जिनमें कुंज बिहारी थापर, उमर हयात खान, चौधरी गज्जन सिंह और राय बहादुर लाल चंद का योगदान था ।
थापर का परिवार नव धनाढ्य था, जिसने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान व्यापार में अपना भाग्य बना लिया था। जनाब औपनिवेशिक ब्रिटिश भारतीय सेना के लिए कमीशन एजेंट थे।
कुंजबिहारी थापर ने ब्रिटिश भारतीय सेना में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए अपने औपनिवेशिक आकाओं को खुश करने के लिए हर संभव प्रयास किया।

और फिर जलियाँवाला बाग़ संकट के दौरान वफादारी के लिए, कुंजबिहारी थापर को 1920 में ब्रिटिश साम्राज्य के सबसे उत्कृष्ट आदेश से सम्मानित किया गया था।
कुंजबिहारी थापर के 3 बेटे थे

1)
दया राम थापर,

2) प्रेम नाथ थापर और

3) प्राण नाथ थापर

और 5 बेटियां।

दया राम थापर ने अपने पिता के प्रभाव से भारत की सैन्य चिकित्सा सेवाओं में काम किया और भारतीय सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा के महानिदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हुए।

उनका एक बेटा रोमेश थापर और दो बेटियां बिमला थापर और रोमिला थापर हैं।
लाहौर में जन्म रोमेश थापर को उनकी शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेजा गया था। एक फैशनेबल समाजवादी के रूप में शुरू करते हुए, थापर अपने उन वर्षों में मार्क्सवादी विचारधारा में विकसित हुए, और मृत्यु तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य बने रहे।
रोमेश थापर ने एक मासिक पत्रिका के रूप में “सेमिनार”की शुरुआत की, और एक स्थिर राजस्व मॉडल की स्थापना की। उनको पता था कि लगभग सभी विज्ञापन राजस्व सरकार से आते हैं, और पत्रिका की बिक्री के लिए सरकारी मदद आवश्यक है।
रोमेश थापर भी समाजवादी और "सामाजिक रूप से प्रगतिशील" नेहरू की अगुवाई वाली “व्यवस्था” में अपने बढ़ते राजनीतिक दबदबे का लाभ उठाने के लिए मुंबई से दिल्ली स्थानांतरित हो गए।

और फिर उन्हें सरकार द्वारा कम दर पर प्रमुख संपत्ति आवंटित की गई थी।
थापर और उनकी पत्नी 1960 और 1970 के दशक के दौरान विशेष रूप से इंदिरा गांधी से नज़दीकियाँ बढ़ाते गए। यद्यपि थापर , इंदिरा को पहले से जानते थे।

नेहरू की मृत्यु के बाद थापर तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के आंतरिक चक्र का हिस्सा बन गए थे।इन सम्बन्धों ने समाज और सरकार में थापर की महत्वपूर्ण भूमिका तय कर दी थी। थापर ने आईटीडीसी के नेशनल बुक्स डेवलपमेंट बोर्ड के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के निदेशक के रूप में कई बार काम किया, और दिल्ली के राष्ट्रीय बाल भवन के उपाध्यक्ष के रूप में भी काम किया ।
रोमिला थापर जी एक प्रसिद्ध "शीर्ष" विशिष्ट जेएनयू नेहरूवादी कम्युनिस्ट विचारक इतिहासकार हैं, जो हमारी पाठ्यपुस्तकों को लिखती रही हैं और उन्हें कांग्रेस-समर्थक मार्क्सवादी प्रचार के साथ प्रदूषित करने में महारथ रखती हैं।

सन 2003 में थापर की कांग्रेस के क्लुज चेयर की लाइब्रेरी में नियुक्ति के लिए एक ऑनलाइन याचिका , जिस पर 2,000 से अधिक हस्ताक्षर थे ,के साथ विरोध किया गया था, इस आधार पर कि वह "मार्क्सवादी और हिंदू विरोधी" थे।

और फिर उसी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने उनकी नियुक्ति को "वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ उदारवादी" कहकर उनकी नियुक्ति का समर्थन किया था।

बाक़ी आप समझदार हैं...
जनरल प्राण नाथ थापर लाहौर के दीवान बहादुर कुंज बिहारी थापर के सबसे छोटे बेटे थे। मार्च 1936 में, थापर ने गौतम सहगल की बहन बिमला बशीराम सहगल से शादी की, जिनकी पत्नी नयनतारा सहगल (अवार्ड वाससी के लिए प्रसिद्ध) विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी और जवाहर लाल नेहरू की भतीजी थीं।

प्राण नाथ थापर एकमात्र भारतीय सेना प्रमुख थे जिन्होंने 1962 में एक युद्ध (चीन के खिलाफ) को खो दिया था। अपनी सेवानिवृत्ति पर जनरल के.एस. थिमय्या ने लेफ्टिनेंट जनरल थोराट को अपने उत्तराधिकारी के रूप में सिफारिश की थी लेकिन उसे नही माना गया और प्राण नाथ थापर को चुना गया था।

यह आश्चर्यजनक है कि 1962 की बहस में प्राण नाथ थापर की भूमिका को इतिहास की किताबों से कैसे छोड़ दिया गया। वैसे भी, वह पराजित होने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था ।
जनरल थापर और श्रीमती बिमला थापर के चार बच्चे थे, जिनमें से सबसे छोटे पत्रकार हैं करण थापर।

जी हाँ वही करण जो एक प्रसिद्ध मीडिया हस्ती हैं और हिंदुस्तान टाइम्स के लिए अक्सर कॉलम लिखते हैं।

क्या क्या लिखते हैं वो आप सभी जानते हैं और क्यूँ लिखते हैं वो भी अब जान गए होंगे।
ख़ून का रिश्ता है जनाब , सर चढ़ कर ही बोलेगा ..
और फिर साहेब नमक हराम थोड़े ही हैं ये पत्तलकार ,
आख़िर नमक का हक़ अदा तो करना है ना ...

पर सत्यानाश हो इस सोशल मीडिया का ना ???

यही दुआ करते होंगे ...
एक थे सुजान सिंह जो खुशब, शाहपुर जिले (अब पाकिस्तान) के गाँव हुदली के निवासी थे और इन्हीं सुजान सिंह के पुत्र थे सोभा सिंह।

और यही सोभा सिंह 8 अप्रैल, 1929 को असेंबली बम विस्फोट की घटना के गवाह भी थे।
श्री १००८ शोभा सिंह जी ने भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की पहचान की और बाद में सोभा सिंह की गवाही के कारण भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर चढ़ाया गया।
तत्पश्चात सुजान सिंह और सोभा सिंह को वरिष्ठ-श्रेणी के ठेकेदारों के रूप में स्वीकार किया गया था।

जब भारत के वायसराय हार्डिंग ने ब्रिटिश इंडियन कैपिटल सिटी को दिल्ली स्थानांतरित करने की योजना की घोषणा की तब लुटियन के दिल्ली के निर्माण अनुबंधों को इन्हीं सिंह साहब को दिया गया था।

साउथ ब्लॉक, और वार मेमोरियल आर्क (अब इंडिया गेट) के लिए यही अशिक्षित सोभा सिंह एकमात्र बिल्डर थे। सोभा सिंह दिल्ली में जितनी जमीन खरीद सकते थे उतनी ख़रीदते गए । 2 रुपये प्रति गज़ के हिसाब से उन्होंने कई व्यापक साइटें खरीदीं और वो भी फ़्री होल्ड के रूप में..

ये उस ज़माने के वाड्रा साहब थे और आगे आने वाले समय में रॉबर्ट के गुरु कहलाए..
उस समय उन्हें आधी दिल्ली दा मलिक (दिल्ली के आधे हिस्से का मालिक) कहा जाता था।
उन्हें 1944 के बर्थडे ऑनर्स में सर की उपाधि से विभूषित किया गया था।

सर सोभा सिंह के छोटे भाई, सरदार उज्जल सिंह बाद में सांसद बने और तमिलनाडु के राज्यपाल भी रहे।
सर सोभा के चार बेटे थे:

भगवंत सिंह,

खुशवंत सिंह (प्रमुख पत्रकार, और लेखक),

मेजर गुरबख्श और दलजीत

और एक बेटी, मोहिंदर कौर।
खुशवंत सिंह एक मुखर इंदिरा गांधी समर्थक थे और उन्हें आपातकाल के मुख्य समर्थक के रूप में जाना जाता है। सर सोभा की बेटी मोहिंदर कौर की बहू थी रुखसाना सुल्ताना जो संजय गांधी की “बहुत ख़ास” थी। रुखसाना बाद में अभिनेत्री अमृता सिंह की मां होने के लिए भी जानी गईं। खुशवंत सिंह के बेटे राहुल सिंह को आसानी से NDTV या कुछ अन्य समाचार चैनलों पर गंभीर यौन / आपराधिक अपराधियों जैसे तरुण तेजपाल, टेस्टा सेतलवाड और आर.के. पचौरी आदि का बचाव करते हुए पाया जा सकता है।

यह वास्तव में दिलचस्प है कि कुंजबिहारी थापर (जलियांवाला बाग नरसंहार माफी वाले ) की नातिन, मालविका सिंह ने सर सोभा सिंह के पोते तेजवीर सिंह से शादी की, जिसकी गवाही पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गयी थी।

और इस प्रकार ये ज़हरीला चक्र पूर्ण हुआ.


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