भारत के गरीब सुल्तान

" जो भाई चोरवाड़ थी मुम्बई चालीस पैसा मा कॉल थातो होइ, तो पडवो नाइ तो ना पडता"

ये शब्द थे धीरूभाई के अम्बानी बंधुओं को जब वो अपना टेलीकॉम का धंधा शुरू करने वाले थे और बड़े अम्बानी से सलाह मशवरा करने गए थे।
यह गुजराती में है और इसका सीधा सा मतलब है: यदि आप लोग 40 पैसे प्रति मिनट में चोरवाड़ से मुंबई तक कॉल को सक्षम कर सकते हैं तो व्यापार में लग जाएं, अन्यथा नहीं। 

बड़े अम्बानी साहब उन दिनों बीमार से रहते थे और काम काज को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी सारी अम्बानी बंधुओं पर ही थी
चोरवाड़ अम्बानियों का गृहनगर है और विश्वप्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर चोरवाड़ समुद्र तट के बाजू में ही है। धीरूभाई ने अपने शुरुआती दिनों में गरीब, बिना पानी, बिना सड़क और बिना बिजली वाले चोरवाड़ को देखा था। उन्होंने गरीबों और गरीबी को अच्छी तरह से समझा था।
यही कारण था कि धीरूभाई ने गरीबों को अपना सबसे बड़ा ग्राहक बनाया और रोज़मर्रा की वस्तुओं के व्यापार में लग गए थे । इस प्रकार, जब रिलायंस टेलीकॉम को आखिरकार लॉन्च किया गया, तो प्रति मिनट कॉल दर वास्तव में लगभग 40 पैसे ही थी।
धीरूभाई ने अनुभव किया था कि चोरवाड़ में मुंबई और उनके परिवार के बीच ट्रंक कॉल करना मुश्किल ही नहीं बल्कि बहुत महंग भी था।
भारतीय परिवारों का एक बड़ा हिस्सा अपनी मेहनत और ईमानदारी से गरीबी से ऊपर उठकर आया है।आर्थिक मजबूती के बाद भी अधिकांश परिवारअपनी जीवन शैली में आम शैली ही बनाये हुए हैं। धीरूभाई कभी भी आडंबरपूर्ण नहीं थे लेकिन उनके बेटों के बारे में यह नही कहा जा सकता है।
उनके बेटे गरीबी में पैदा नहीं हुए जैसे धीरूभाई पैदा हुए थे। गूगल के वैश्विक प्रमुख सुंदर पिचाई भी गरीबी से जूझ रहे परिवार से अमीर बन गए। ऐसी लाखों कहानियां हैं। नरेंद्र मोदी भी अपेक्षाकृत गरीब परिवार से सीएम और फिर पीएम बने।
इन सभी कहानियों के बीच आम सूत्र यह है कि पहली पीढ़ी के सभी लोगों ने गरीबी को पहली बार देखा और अनुभव किया है। उन्हें पता है कि यह कैसा लगता है। गरीबी आपको सबसे ज़्यादा डराती है।
और एक होते हैं राहुल गांधी, जो अपनी थुथरिया में चांदी के चम्मच के साथ पैदा हुए थे,जबकि वो चम्मच होना कहीं और था।
ये वो राहुल गांधी हैं जो नकली होने के साथ झूठे और मक्कार भी हैं और अपने ज़िन्दगी का एक अच्छा हिस्सा यूरोप और थाईलैंड के खेल के मैदानों में बिताते आये हैं।
ये वही है जो अपनी "धन दौलत" को पानी की तरह बहाते हैं।
और यही राहुल जब गरीबी के बारे में बात करते हैं, तो गरीबों की बेइज़्ज़ती के अलावा ये कुछ भी नही है। गरीबी और गरीबों की वास्तविकता से राहुल और उनके परिवार का दूर दूर तक नाता नहीं रहा है।
राफेल नाम का परमाणू बम अब फुस्सी बम बन चुका है और अंबानी को 30000 करोड़ रुपये मिलने वाली बात का भी भंडाफोड़ हो चुका है।

अपनी दादी की तरह, इसलिए एक बार फिर, बेईमान और नकली गांधी ,भारतीयों को "गरीबी हटाओ" के अपनी बक़वास के साथ फिर से मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हैं:
ओल्ड इंडिया, न्यू इंडिया, दो हिंदुस्तान आदि ये जो भी बकवास आपने पढ़ी वो सभी राहुल नाम के रट्टू तोते को उनके इम्पोर्टेड मेंटर स्टीव जार्डिंग द्वारा रटाई गई थी। ये ट्वीट राहुल की भाषा नहीं है और ना ऐसी "थारूरियन" भाषा की उम्मीद की जासकती है राहुल से।
"scourge" जैसे शब्द के मायने जानना राहुल की "बुधुमत्ता" से बहुत दूर की बातें हैं।

और यदि आप राहुल को कहते है कि इस शब्द के मायने समझाए तो आप एक विक्षिप्त बालक के साथ ज्यादती कर रहे हैं।

ये उनके लिए विश्वेश्वरैया वाला क्षण दोहराने वाली ही बात होगी।
ये नकली चीनी गांधी खानदान सिर्फ एकमात्र गरीबी जानता है और वो है विचारों की, शालीनता की और ईमानदारी की गंभीर गरीबी।
मेरी समझ से बाहर है कि राहुल ने फिर वही चुटकुला क्यूं सुनाया जो उनकी दादी दशकों पहले सुना चुकी थी।

देखिए @RavinarIN जी की ट्वीट..
वास्तविकता यह है कि मोदीसरकार ने चार वर्षों में गरीबी रेखा से अधिक लोगों मुक्ति दिलाई है, जो कि नेहरू-गांधी की तुलना में 70 वर्षों में कहीं ज़्यादा है - जबकि नेहरू खानदान 70 बरसों में केंद्र और कई राज्यों में सत्ता में था।
2014 में लगभग 140 मिलियन से, 2018 में गरीबी रेखा के नीचे जीने वाली आबादी का आंकड़ा घटकर 73 मिलियन हो गया है और मोदी सरकार गरीबी उन्मूलन के अपने प्रयास में लगातार लगी हुई है।
यह न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था पर्यवेक्षकों बल्कि विश्व बैंक और ऐसे अन्य पर्यवेक्षकों जैसे विश्व निकायों द्वारा स्वीकार किया जाता है। आज भारत गरीबी की सूची में सबसे ऊपर नहीं है, इस सूची में सबसे ऊपर नाइजीरिया है।
चाहे बिजली हो, गैस हो, बुनियादी ढांचा और परिवहन प्रणाली हो , गरीबों के लिए जीवन-बीमा हो, सस्ती दवाएं हों, किसानों की मदद हो, मोदी सरकार ने हर जगह उम्मीदों से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है।
कांग्रेसीयों का ये गीत कि "हम गरीबों के देवता हैं" एक सोची समझी साजिश के अलावा कुछ भी नही और ये उनकी जमींदारी-ब्रिटिश तौर तरीके से हुई परवरिश का ही नतीजा है।

गरीबों के बारे मे उनकी जानकारी उतनी ही है जितनी सिद्धू को परमाणू बम बनाने की है।
जब देश ग्रीष्मकाल के दौरान "बेकरी" में बदल जाता है तो क्या उस दौरान राहुल या उनके परिवार के सदस्यों में से किसी ने एक सप्ताह या दिन बिजली के बिना एक झोंपड़ी में बिताए हैं ?
शीतकाल में बिना रजाई के सड़को पर रात बिताई है या बरसात में बिना छत के आसमान की तरफ ताकते हुए बिताई है ?
क्या इन गरीब सुल्तानों की जीवन शैली से आपको कहीं से भी झलक मिलती है कि इन नकली गांधियों को गरीबों की रत्ती भर भी चिंता है?
नेहरू के बारे में जितना कहा जाए उतना कम है क्योंकि मैं भारत को नेहरू की वजह से हुए नुकसान की सूची से ऊब चुका हूं और विश्व प्रगति की तुलना में हम आज लगभग 50 साल पीछे है। संजय गांधी जैसे घोटालेबाज के नाम पर एक डाकटिकट है और कई स्मारक उसके नाम पर हैं।
भारत के लिए उनका क्या योगदान है?
कुछ भी तो नहीं ना ?
इसको अपना नाम "संजीव" से बदलकर "संजय" क्यों रखना पड़ा, इसके लिए आपको कई रहस्य की परतें खोलनी पड़ सकती हैं।
ये साहब जो कपड़े पहनते हैं, उसमें सिर्फ बर्बरी जैकेट की ही कीमत 79 हज़ार  रुपये तक होती है। इसी प्रकार प्रियंका भी अपने स्टाइल स्टेटमेंट के लिए कुछ कम नहीं जानी जाती हैं।
इस भ्रष्ट परिवार के एक भी व्यक्ति ने कभी भी अपनी ज़िंदगी मे गरीबी की एक रात तक का सामना नहीं किया। बेशक, ये भी कोई तर्क नहीं है कि गरीबी को समझने के लिए किसी को गरीब होना चाहिए। यह कहना उतना ही बेवकूफी भरा होगा जितना कि बीमारी को समझने के लिए डॉक्टर का बीमार होना।
बड़ा अंतर यह होता है कि डॉक्टर को शिक्षा और प्रशिक्षण का वर्षों का अनुभव होता है।
जब इन नकली गांधियों की बात आती है, तो उनका एकमात्र प्रशिक्षण इस खास "परिवार" में पैदा होना और अमीर होना होता है। 

मुझे उनके अमीर होने से शिकायत नही है पर अगर आपको यह सब आपके काम या विरासत या शादी से मिला होता तो इसके बारे में कुछ भी बुरा नही होता।
लेकिन न तो पप्पू और ना ही पप्पी ने किसी भी तरह से गरीबों या गरीबी के लिए ईमानदारी से एक भी दिन काम करके दिखाया है। एकमात्र काम जो उन्होंने किया है वो है गरीबी-पर्यटन और गरीबों के लिए नकली आँसू।
इतना तो हम सभी जानते हैं कि एक व्यक्ति जो वास्तव में गरीबों की परवाह करता है वह अपने आचरण और व्यवहार में इसे दिखाता है।

वो गरीबों से झूठे हमदर्दी के बोल नहीं बोलता है,
वो जो गरीबों से वादे करता है उनको निभाता भी है।
अगर कांग्रेस गरीबों के दर्द को सहती और समझती है, तो वे यूरोप या गोवा में गुपचुप तरीके से अय्याशी नही करते, आडंबरपूर्ण भोजन और गुप्त लक्जरी छुट्टियों में पैसा नहीं उड़ा रहे होते।
राहुल ने कई गरीबी-दौरे किए हैं, यहां तक ​​कि ब्रिटेन के एक मंत्री के साथ भी, और फिर उन्होंने संसद में "कलावती" के साथ अपने अनुभव के बारे में बयानबाजी की। वह दलितों के साथ अपने भोजन के फोटो-ऑप्स करते हैं। लेकिन क्या वास्तव में उन्होंने कभी कुछ किया है? 

कुछ भी तो नहीं!
कभी नहीं..
गरीबों के लिए कांग्रेस के पास ना तो कोई अनुभव है और ना ही कोई सहानुभूति या दर्द।

भ्रष्ट कांग्रेस कैसे भी बस सत्ता को हथियाना चाहती है और वोभी किसी भी कीमत पर और कितने ही झूठे वादों के साथ.

पर कोई भी मीडिया उनसे कभी सवाल नहीं करता है..
राहुल के नवीनतम कोच स्टीव जार्डिंग ने मोदी को एक "भ्रष्ट आदमी" के रूप में प्रस्तुत करने के लिए राहुल को प्रशिक्षण दिया किन्तु वह भी काम ना आया। इसलिए, उन्होंने हाल ही में "यूनिवर्सल बेसिक इनकम" (यूबीआई) के बारे में बात करना शुरू कर दिया।
राहुल नामक इस झुमरी तलैया केआइंस्टीन ने 7.86 दिनों के लिए अपने "आर्थिक-प्रयोगशाला" में काम किया और चिल्लाया "यूरेका" और फिर खोज निकाली ये अनहोनी शब्दावली जिसका नाम था "यूनिवर्सल बेसिक इन्कम"...
NDTV और IndiaToday में शामिल मीडिया मेड्स भी इस शादी में शामिल हो गए और जी भर कर नागिन डांस किया। 
जबकि इन आंख के अंधे और नाम नयनसुखों को ये नही पता था ​​कि यूबीआई एक ऐसा विचार है जो पहले से ही मोदी सरकार द्वारा लागू किया जा चुका है।
जनाब ,लोग मूर्ख नहीं हैं ,बात सिर्फ इतनी सी है किआजादी के बाद, लंबे समय तक कांग्रेस इतनी हावी रही कि विकल्प बनने में थोड़ा लंबा समय लग गया।
कांग्रेस ने हर विपक्ष को बुराई के रूप में चित्रित किया और यहां तक ​​कि नेहरू के कई आलोचकों को जेल में डाल दिया या उन पर प्रतिबंध लगा दिया।
ये वो साल थे जब मीडिया या कहीं से भी किसी ने भी उनसे कोई सवाल नहीं किया। 
ये सभी नेहरू-गाँधी कुछ सुल्तानों की तरह थे… 

जी हां "गरीब सुल्तान”

और फिर भ्रष्ट कांग्रेस ने राजनीति को एक ऐसा गंदा पेशा बना दिया जिसमें कई लोग सिर्फ पैसा लूटने के लिए राजनीति में उतर गए।
इस प्रक्रिया में, उन्होंने गरीबों को उसी नरक में सड़ने के लिये छोड दिया जिस नरक से बाहर निकालने का वादा करके कांग्रेस सत्ता में आई थी। अगर उनमें से कुछ गरीबी से बाहर निकले भी तो वे अपने बलबूते के कारण अधिक थे।
इस प्रकार, कांग्रेस के सभी सहयोगी जैसे लालू, पवार, मायावती या मुलायम आदि - ये सभी गरीब और गरीबी के नाम को इस्तेमाल कर बदमिजाजअमीर बन गए हैं। 
यह भ्रष्ट संस्कृति गान्धी द्वारा देश को दिया गया एकमात्र उपहार है।रायबरेली और अमेठी तो आज भी के गरीबों के लिए दयनीय नरक हैं।
लोग नेहरू-गांधी के कबीले को देख रहे हैं कि वे वास्तव में है क्या चीज़ ?

नेहरू से होता हुआ ,इंदिरा गांधी के हाथों से निकलता हुआ, राजीव के द्वारा पोषित ये कौन सा नया चुटकुला है जो राहुल सुनाने आये हैं भैया ?
वाजपेयी और मोदी ये दो गैर-कांग्रेसी पीएम हैं, जो भ्रष्ट नहीं हैं और उन्होंने आजादी के बाद के भारत के इतिहास में सबसे ज्यादा विकासोन्मुखी सरकारें प्रदान की हैं। 
जबकि इंदिराजी से लेकर सोनिया तक सभी ने गरीबों को गरीब रहने देने में कोई कसर नही छोड़ी है।
गाँधी कबीला वह खानदान है जो पहले गरीबों को पहाड़ से मरने के लिए धक्का दे देते हैं और फिर उनमे से एक नकली रॉबिनहुड के रूप में सामने आकर अपने पाजामे का नाड़ा नीचे फेंक कर उनको बचाने का नाटक करता है। 

"गरीबी हटाओ" नाम के नाड़े को फेकने वाले "नकली रॉबिनहुड" का ही नाम राहुल है।
कांग्रेस के सलाहकार श्री श्री 1008 मोंटेक अहलूवालिया ने "गरीबों के बारे में चिंता" करने के लिए अपने शौचालय का नवीनीकरण करने के लिए 35 लाख खर्च किए थे। 

और अभी पिछले चार साल में, मोदीसरकर ने कांग्रेस के सभी लुटेरों की तुलना में गरीबों के लिए अधिक शौचालयों का निर्माण किया है।
मेरे परिवार और मैंने भी गरीबी का अनुभव किया है, इसलिए मुझे पता है कि इन चीनी गांधियों द्वारा गरीबी के बारे मे जो भी कहा गया है वो सिरफेक मज़ाक है।

अगर कभी मेरी राय मांगी गई तो मैं गरीबों के लिए कॉलेज तक की शिक्षा को मुफ्त बनाने की सिफारिश करूंगा।
गरीबो को मुफ्त शिक्षा ही सबसे बड़ा गरीबी-उन्मूलन है। जीवन के अपने अनुभव को देखते हुए, पप्पू या पप्पी जैसे गरीब सुल्तान या गरीब रानी को गरीबी उन्मूलन के बारे में सुनने से अच्छा है कि किसी थर्ड रेट स्टैंड अप कॉमेडियन को सुना जाए।
गरीबी पर कांग्रेस के इन लुटेरों का व्याख्यान कुछ नहीं बल्कि गरीबों और देश पर एक अपमान और एक भद्दा चुटकुला मात्र है। 

हमने इनकी काफीबकवास सुनी है और अब इस देश के बाकी कुछ गरीबों को इन लुटेरों की ज़रूरत बिल्कुल भी नही है।
और जब यह विशेष रूप से गरीबी उन्मूलन की बात आती है, तो मैं किसी भी दिन अपना पूर्ण विश्वास उस व्यक्ति के साथ रखूंगा जिसके पास अनुभव भी और दर्द भी है और वो एक नाम है

@narendramodi
मुझे नकली रॉबिनहुड पर अब बिल्कुलभरोसा नहीं है जो यूरोप/विदेश में आधा साल बिताता है और गरीबी पर व्याख्यान देने के लिए भारत आता है। 

गांधी कबीले के बचे खुचे वंशज अब अपने चांदी के चम्मच की पुंगी बना सकते हैं।

उस पुंगी से वो खाएं या कुछ और करे ये उन पर निर्भर करेगा

#वंदेमातरम

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